नेफ्रोलॉजी और यूरोलॉजी विभाग में दो ओटी है तथा वर्तमान समय में क्रमश: १२ और १४ बिस्तर फंशनल हैं। दोनों विभाग ३० बिस्तरों के लिए प्रस्तावित हैं। अधिकारियों का कहना है कि किडनी ट्रांसप्लांट शुरू होते ही बिस्तरों की संख्या बढ़ा दी जाएगी।
भारतीय प्रत्यारोपण अधिनियम के अनुसार, पत्नी, दादा-दादी, माता-पिता, सहोदर, बच्चे और निकट संबंधी किडनी डोनर कर सकते हैं। इनके लिए दस्तावेज को लेकर बहुत कम औपचारिकताएं हैं। लेकिन इन्हें स्वास्थ्य संबंधी सभी जांच से गुजरना पड़ता है। यदि डोनर कोई और है तो कानूनी नियमों को पूरा करना होता है, जिसमें थोड़ा समय लगता है। ऑपरेशन से पहले मरीज के रिश्तेदार और किडनीदाता के रिश्तेदारों की सहमति ली जाती है।
किडनी के मरीज और डोनर का राज्य अलग-अलग होने पर दोनों को दोनों ही राज्यों से अनुमति लेनी पड़ती है। ट्रांसप्लांट के पहले कई तरह के प्रमाण पत्रों के माध्यम से यह प्रमाणित करना पड़ता है कि उनके बीच किडनी का ट्रांसप्लांट बिना किसी लेन-देन के हो रहा है। प्रदेश में आवेदन पत्र की जांच के लिए फोरेंसिक, पैथालॉजी और मेडिसिन विभाग की एक कमेटी गठित है। यह कमेटी मरीज और डोनर की काउंसिलिंग कर अध्यक्ष कलक्टर के पास भेजती है। कलक्टर से मंजूरी मिलने के बाद किडनी ट्रांसप्लांट किया जाता है।
डॉ. करन पीपरे, अधीक्षक, एम्स रायपुर