ये मत खाओ, वो मत पहनो
साइंटिस्ट व शायर गौहर रजा ने वर्तमान हालात पर अपनी बात रखते हुए कहा, धरम में लिपटी वतन परस्ती क्या क्या स्वांग रचाएगी,
मसली कलियां, झुलसा गुलशन, ज़र्द खिंज़ा दिखलाएगी।
यूरोप जिस वहशत से अब भी सहमा-सहमा रहता है
खतरा है वो वहशत मेरे मुल्क में आग लगाएगी।
ये मत खाओ वो मत पहनो इश्क तो बिल्कुल करना मत
देश द्रोह की छाप तुम्हारे ऊपर भी लग जाएगी।
ये मत भूलो अगली नस्लें रौशन शोला होती है
आग कुरुदोगे चिंगारी दामन तक तो आएगी।।
वक्त गुजरता रहता है हालात बदलते रहते हैं
बुरहानपुर के शायर नईम राशिद बुरहान की गजल की एक बानगी,
बढ़ती रहीं दम-ब-दम जख्म की गहराइयां
देख चुके जिंदगी तेरी मसिहाइयां
हर कोई मशरूफ है महल की तामीर में
भूल गया आदमी कब्र की गहराइयां , वक्त गुजरता रहता है हालात बदलते रहते हैं
साज कभी आवाज कभी नगमात बदलते रहते हैं
पागल किसको ढूंढ़ रहा है हाथ में एक तस्वीर लिए लोग यहां चेहरों को दिन रात बदलते रहते हैं
तेरी आंखों से ओझल हो गए हैं ये आंसू हैं
बिजनौर से आए शायर फााखिर अदीब ने कहा,
मेरी हिस तेरे गम को ऐसे चश्मेतर
में रखती है के जैसे मां सियानी बेटियों को घर में रखती है
तेरी आंखों से ओझल हो गए हैं ये आंसू हैं
के पागल हो गए हैं बुजुर्गों से घर मे रौनकें थीं कई घर अब तो जंगल हो गए