हृदय रोगी- ठंड में सबसे ज्यादा परेशानी 50 वर्ष से अधिक के व्यक्तियों। ठंड में हार्ट अटैक/या कॉर्डियक अरेस्ट के मामले 2-3 गुना तक बढ़ जाते हैं। अस्थमा रोगी- ठंड में फेफड़ों की क्रियाशीलता कम होने लगती है क्योंकि प्रदूषण सीधे हमारे फेफड़ों को नुकसान पहुंचाता है। अभी से अस्पतालों और क्लीनिक में मरीज आने शुरू हो चुके हैं। अस्थमा के मरीज किसी भी आयुवर्ग के हो सकते हैं।
निश्चित तौर पर ठंड में सांस संबंधी बीमारियों के मरीजों की संख्या बढ़ जाती है। हर साल इसकी वजह रायपुर का प्रदूषण होता है। और इस साल कोरोना वायरस का अटैक भी है। जिसमें भी सांस की समस्या प्रमुख लक्षण पाया जा रहा है। ऐसे में बहुत ज्यादा सतर्कता बरतने की आवश्यकता है। खासकर बुजुर्गों को लेकर।
(- डॉ. आरके पंडा, विभागाध्यक्ष, टीबी एंड चेस्ट, डॉ. भीमराव आंबेडकर अस्पतला के अनुसार)
वायरस ठंड में अन्य मौसम की तुलना में ज्यादा सक्रिय होते हैं। यह नया वायरस है, जिसके बारे में अभी कोई अनुमान नहीं लगाया जा सकता। गर्मी में भी यह प्रभावी रहा, जबकि गर्मी में वायरस निष्क्रिय हो जाते हैं। अब ठंड में सब हमारी इम्युनिटी पर निर्भर रहेगा। अगर, रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी होगी तो हम इससे लड़ पाएंगे।
(- डॉ. अरविंद नेरल, विभागाध्यक्ष, विभागाध्यक्ष, माइक्रोबायोलॉजी, पं. जेएनएम मेडिकल कॉलेज रायपुर के अनुसार)
कोरोना महामारी से निपटने के लिए राज्य सरकार ने कोरोना कंट्रोल एंड कमांड सेंटर की स्थापना की थी। जिसका मुख्यालय सर्किट हाउस रायपुर को बनाया गया था। कोर कमेटी ने स्वास्थ्य, पुलिस, नगरीय निकाय के आला अधिकारियों के साथ-साथ चिकित्सा विशेषज्ञों का पैनल भी होता था। जो कोर कमेटी के अहम सदस्य थे। तत्कालीन स्वास्थ्य सचिव निहारिका बारीक रोजाना इनकी बैठक लेकर कोरोना नियंत्रण की नीति बनाती थीं। मगर, अभी सिर्फ ४ शीर्ष अधिकारी ही बैठक में शामिल होते हैं। चीजें तय करते हैं। बीते कई हफ्तों से एक्सपर्ट को शामिल नहीं किया जा रहा है। जिसे लेकर इनकी नाराजगी भी है। इसलिए ये बुना बुलाए कंट्रोल रूम नहीं जा रहे।
डॉ. सुभाष पांडेय, प्रवक्ता एवं संभागीय संयुक्त संचालक, स्वास्थ्य विभाग