कार्डियोथोरेसिक एवं वैस्कुलर सर्जरी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. कृष्णकांत साहू बताते हैं कि इस ऑपरेशन की प्रक्रिया में दायें पैर की धमनी को जिसको इलायक आर्टरी ( iliac artery ) कहते हैं, को कृत्रिम नस के द्वारा, बायें पैर की नस फीमोरल आर्टरी ( femoral artery ) से जोड़ दिया जाता है। इस बीमारी को चिकित्सकीय भाषा में युनीलैटरल एओर्टो इलायक ( unilateral aortoiliac ) एवं पॉपलिटियल आर्टरी ब्लॉकेज ( popliteal artery blockage ) कहा जाता है। सामान्य भाषा में इसे पेरीफेरल आर्टेरियल डिसीज ( peripheral arterial disease PAD ) कहा जाता है। इस बीमारी में हृदय से निकलने वाली मुख्य नस जिसको महाधमनी (एओर्टा) कहा जाता है, जो पेट में जाकर दो भागों में बंट जाता है और दोनों अलग-अलग पैरों में रक्त की सप्लाई करते हैं।। इस खून की नस के बंद होने के कारण पैर काला पड़कर सड़ना प्रारंभ हो जाता है जिसको गैंगरीन कहा जाता है। जैसा कि इस केस में हुआ था। प्रारंभ में जब खून की नस में रूकावट कम होता है तो पैरों में खून का दौरा सामान्य से कम होता है। इस स्थिति में मरीज को थोड़ा दूर चलने के बाद पैरों में खासकर पिंडलियों में दर्द होना प्रारंभ हो जाता है। जिसको क्लाडिकेसन ( claudication ) कहा जाता है एवं जैसे-जैसे नसों में ब्लॉक बढ़ जता है तो मरीज के पैरों में लगातार दर्द बना रहता है जिसको रेस्ट पेन ( Resting Pain ) कहा जाता है एवं नसों की रूकावट और बढ़ने पर (पूरी तरह से बंद होने पर) पैर काला होकर सड़ना प्रारंभ कर देता है। ऐसी स्थिति में पैर काटने के अलावा और कोई रास्ता नहीं होता। यह बीमारी ठंड के सीजन में और बढ़ जाती है।
ब्लॉकेज का मुख्य कारण है: धूम्रपान, तंबाकु, गुड़ाखू, अनियंत्रित मधुमेह, हाई कोलेस्टराल एवं वैस्कुलाइटिस ( vasculitis )। यह ठीक उसी तरह है होता है जिस प्रकार हृदय की नसों में रूकावट होता है जिसको कोरोनरी आर्टरी डिजीस ( CAD ) कहते हैं। पूर्व में इस बीमारी का एक ही इलाज होता था जिसमें पैर को काट दिया जाता था परंतु आज बहुत सारी नयी तकनीक आने के कारण नसों में रूकावट की स्थिति जान ली जाती है एवं उसके अनुसार इलाज किया जाता है। यह बीमारी इतनी सामान्य है कि प्रत्येक ओपीडी में कम से दो या तीन मरीज इस बीमारी ( peripheral arterial disease PAD ) से ग्रसित होता है।
70 वर्षीय महिला को 3 महीना पहले खेत में काम करते समय अंगुलियों के बीच केंदुआ (एक प्रकार का फंगल इन्फेक्शन ) हो गया था। यह चोट धीरे-धीरे फटे पंजे को चपेट में ले लिया एवं बायां पैर का पूरा पांव काला होकर सड़ गया था एवं शरीर में जहर फैलना प्रारंभ हो गया था। पहले लोकल डॉक्टरों से इलाज के नाम पर केवल एंटीबायोटिक एवं दर्द निवारक गोली लेते रही परंतु इसके बाद भी कोई लाभ नहीं मिला। फिर समाचार पत्रों के माध्यम से जानकारी मिली कि एसीआई में खून की नसों की बीमारी का इलाज होता है। इस महिला में बीमारी का कारण वैस्कुलाइटिस (एओर्टा आर्टराइटिस) था क्योंकि यह धूम्रपान, गुड़ाखू का सेवन नहीं करती थी एवं उसको मधुमेह भी नहीं था।
सबसे पहले मरीज के पैर का कलर डॉप्लर करवाया गया एवं उसके बाद पेट एवं पैर की खून की नसों का सी. टी. एंजियोग्राफी करायी गयी जिससे पता चला कि उसके पेट के अंदर बायीं मुख्य धमनी जिसको इलायक आर्टरी कहते हैं एवं घुटने एवं पिंडली की नस में ब्लाकेज था। इस ऑपरेशन में मरीज के दायें पैर की नस जिसको इलायक आर्टरी कहते हैं, को बायें पैर की फीमोरल आर्टरी (जंघें की खून की नस) से एक कृत्रिम नस जिसको पी. टी. एफ. ई. ( PTFE ) ग्रॉफ्ट कहा जाता है, से जोड़ दिया गया एवं पिंडलियों एवं घुटने की नस को खोल कर कोलेस्ट्राल प्लॉक को निकाला गया एवं नस की साइज बढ़ाने के लिए पी. टी. एफ. ई. पैच लगाया गया।
कार्डियोवैस्कुलर सर्जन – डॉ. कृष्णकांत साहू (विभागाध्यक्ष), डॉ. निशांत चंदेल, डॉ. नीरज (रेसीडेंट), डॉ. नन्दु (रेसीडेंट)
एनेस्थेटिस्ट – डॉ. ओ. पी. सुंदरानी, डॉ. सौम्या (रेसीडेंट)
नर्सिंग स्टॉफ – चोवाराम, मुनेस