भांग पर साथ आए भारत और पाकिस्तान
संयुक्त राष्ट्र में दवा के रूप में मान्यता दिए जाने के बाद भी भांग के गैर मेडिकल इस्तेमाल को अभी प्रतिबंधित किया गया है। संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधित मादक पदार्थों की लिस्ट से निकाले जाने के लिए मतदान हुआ। इसमें 27 सदस्यों ने पक्ष में और 25 सदस्यों ने इसके खिलाफ मतदान किया। ऐतिहासिक वोटिंग के दौरान अमेरिका और ब्रिटेन ने बदलाव के पक्ष में मतदान किया। उधर, भारत, पाकिस्तान, नाइजीरिया और रूस ने इस बदलाव का विरोध किया। संयुक्त राष्ट्र के मान्यता के बाद उन देशों को इससे फायद होगा जहां पर भांग की दवा की मांग बढ़ रही है। साथ ही अब भांग के दवा के रूप में इस्तेमाल के लिए शोध बढ़ सकता है।
50 देशों में भांग का इलाज के लिए रूप में इस्तेमाल
भारत में भांग का इस्तेमाल हजारों साल से हो रहा है। भांग का धार्मिक कर्मकांडों में भी इस्तेमाल किया जाता है। चीन में 15वीं शताब्दी ईसापूर्व में चीन में और मिस्र तथा प्राचीन यूनान में भांग का इस्तेमाल दवा के रूप में किया जाता रहा है। संयुक्त राष्ट्र के मान्यता देने के बाद अब यह और ज्यादा देशों को भांग को दवा के रूप में इस्तेमाल के लिए प्रेरित कर सकता है। दुनियाभर में 50 से ज्यादा देशों में भांग के इलाज के लिए इस्तेमाल को मान्यता दी गई है। कनाडा, उरुग्वे और अमेरिका के 15 राज्यों में शौकिया तौर पर भांग के इस्तेमाल को मान्यता दी गई है। भारत में भी इसका धड़ल्ले से इस्तेमाल किया जाता है। होली पर तो इसकी डिमांड और ज्यादा बढ़ जाती है। अब मैक्सिको और लग्जमबर्ग भी भांग को मान्यता देने जा रहे हैं।
‘भांग पर प्रतिबंध औपनिवेशिक सोच का परिणाम’
मादक पदार्थों के सुधार से जुड़े एक एनजीओ ने कहा कि भांग को संयुक्त राष्ट्र से मान्यता मिलना करोड़ों लोगों के लिए बहुत अच्छी खबर है। ऐसे लोग दवा के रूप में भांग का इस्तेमाल करते हैं। यह भांग आधारित दवाओं की बढ़ती मांग को भी दर्शाता है। उसने कहा कि मेडिसिन के रूप में इसके इस्तेमाल की मांग काफी समय से लंबित थी। भांग पर प्रतिबंध औपनिवेशिक सोच और नस्लवाद का परिणाम था। भांग के इस्तेमाल को बैन करने से विश्वभर में करोड़ों लोगों को अपराध का दोषी मान लिया गया।