ओडीएफ पर भ्रष्टाचार का ग्रहण
शौचालय निर्माण के बिना राशि आहरित
ओडीएफ पर भ्रष्टाचार का ग्रहण
रायपुर। खुले में शौच से मुक्ति के लिए घर-घर में शौचालय निर्माण में घपला-घोटाला, फर्जीवाड़ा और भ्रष्टाचार करना केंद्र सरकार के स्वच्छ भारत अभियान का खिल्ली उड़ाने जैसा है। कोरबा जिले के चार गांवों बांधाखार, मानिकपुर, बतरा और चैतमा में 2032 शौचालयों का निर्माण होना था, लेकिन महज 636 शौचालयों का निर्माण कर पूरे शौचालयों की राशि आहरित कर ली गई। गड़बड़ी करने वालों में ग्राम पंचायतों के सरपंच, सचिव सहित नौकरशाहों के शामिल होने से जनप्रतिनिधियों की नीयत और प्रशासनिक कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिह्न लग गया है। लगता है कि नौकरशाहों और जनप्रतिनिधियों को न कानून का भय है और न ही स्वच्छता व जनहित की चिंता। फर्जीवाड़े का यह मामला भ्रष्टाचारमुक्त प्रशासन देने के प्रदेश सरकार के दावे की भी धज्जियां उड़ाता है।
प्रदेश में शौचालय निर्माण के कई पहलू हैं। पहला, कई गांवों में शौचालय निर्माण कार्य सालों तक पूरा नहीं होता। दूसरा, घटिया निर्माण की वजह से कई नवनिर्मित शौचालय कुछ ही महीनों में जर्जर हो जाती हैं। तीसरा, कई शौचालय कागजों में बन जाती हैं। चौथा, सरकार शौचालय निर्माण के भुगतान के लिए पैसे देने में लेटलतीफी करती है। पांचवा, शौचालय निर्माण की राशि नहीं मिलने से हितग्राहियों को परेशानियां उठानी पड़ती हैं। छटवां, ओड़ीएफ घोषित कई गांवों में लोग खुले में शौच करने को मजबूर हैं। खुले में शौच करना आज के आधुनिक, शिक्षित, सभ्य व जागरूक समाज के लिए बदनुमा दाग है। ‘नारियोंÓ के लिए शर्मिंदगी का सबब है। देश की आधी आबादी के खुले में शौच करने की मजबूरी के परिणामस्वरूप उल्टी-दस्त जैसी कई बीमारियां बड़े पैमाने पर फैलती हंै। जलस्रोत प्रदूषित हो जाता है। पानी की गुणवत्ता खत्म हो जाती है, सो अलग।
बहरहाल, प्रदेश को ओडीएफ कराने के लिए सरकार को शौचालय निर्माण में सख्त निगरानी के साथ ही भुगतान में शीघ्रता व गंभीरता बरतनी चाहिए। भ्रष्टाचार करने वालों को तत्काल पद और नौकरी से बर्खास्त कर राशि वसूलनी चाहिए। ताकि, स्वच्छ प्रदेश-स्वस्थ लोग का सपना साकार हो सके।
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