पलायन का दंश
एरला पंचायत के चन्दन सिंह, सुकरु राम, पयाम, गोविन्द ने बताया कि मूलभूत सुविधाओं के लिये दिक्कत तो है ही हमारे सामने बेरोजगारी बड़ी समस्या है। मनरेगा सिर्फ मजाक ही बन कर रह गया या तो काम नहीं मिलता, मिल गया तो पैसे ही नहीं मिलते। मजबूरी में कमाने खाने पलायन करना पड़ता है। वहीं शासकीय योजनाओं की बात की जाए तो मुख्यालय से अंदर जाते-जाते ये भी दम तोड़ देते हैं। प्रधानमंत्री आवास, शौचालय के लिये कई बार आवेदन दिया, लेकिन अब तक लाभ नहीं मिला।
न डॉक्टर न ही शिक्षक
स्वास्थ्य की अगर बात की जाए तो गांव के उपस्वास्थ्य केंद्र छोड़ ही दीजिये, मुख्यालय के जिला अस्पताल की स्थिति ही खऱाब है। भोलाराम, नंदू, नागेंद्र ने बताया कि गांव से 80 से 100 किमी तक सफर तय कर यहां इलाज के लिये आते हैं, लेकिन चिकित्सकों की कमी की वजह से ठीक ढंग से इलाज ही नहीं हो पाता। मजबूरी में रायपुर, जगदलपुर जाना पड़ता है। मतलब साफ है, गंभीर स्थिति में चरमराई स्वास्थ्य व्यवस्था का खामियाजा आदिवासियों को भुगतना ही पड़ता है। एरला ग्राम के शासकीय शिक्षक आनंद मांडवी ने बताया कि पूर्व माध्यमिक शाला, माध्यमिक शाला मिलाकर सिर्फ दो शिक्षकों के भरोसे दशकों से स्कूल संचालित हो रहे हैं। 8 साल से शिक्षक के लिये आवेदन देते देते थक गए लेकिन कोई शिक्षक नहीं मिला। जहाँ या तो आपको भवन नहीं दिखेंगे दिख भी गये तो, बिना शिक्षक बच्चे एकलव्य की तरह पढ़ते दिखेंगे।
शिल्प कलाकार देख रहे बदहाली के मंजऱ
कोंडागांव में बस्तर आर्ट शिल्प कलाकारों का बहुत बड़ा समूह रहता है। जिसकी संख्या 300 से अधिक है जो सिर्फ बस्तर की कला और संस्कृति को अपने शिल्पकारी से सुशोभित कर रहे, लेकिन आज की स्थिति में उनके पास खुद का कुछ नहीं है। सब्बीर नाग से बातचीत में बताया कि हमारी कलाकृति देश विदेश में छत्तीसगढ़ की संस्कृति को प्रस्तुत करती है लेकिन शासन स्तर पर हमारी उपेक्षा हमेशा से होती रही है। विश्वस्तरीय आर्ट बनाने के बावजूद न सम्मान मिल रहा है न ही उचित मेहनताना। आज स्थिति ऐसी है कि इन कलाकारों के साथ ही इस शिल्पकला पर भी संकट के बादल मंडराने लगे हैं।
रेललाइन है बड़ा मुद्दा
महेंद्र और देव सिंह ने बताया कि सरकार ने पलारी से पुलगांव तक 8 किमी तक बायपास के लिये हरी झंडी दी। जिसके लिये अब तक काम शुरू ही नहीं हुआ। जो यहाँ यातायात के बढ़ते दबाव को देखते हुये बड़ी जरुरत है। इसके अलावा रेलवे लाइन जो नारायणपुर से जगदलपुर यहाँ से होते हुये गुजरेगी। लाखों आदिवासियों को इससे सीधा फायदा होगा, लेकिन मामला भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया में ही फसा पड़ा है।