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रायपुर

CG Election 2018: जब अपने खिलाफ हो रहे धरने में पहुंच गए थे मोहन भैया

धरने के दौरान मोहन भैय्या के खिलाफ FIR दर्ज करने की मांग की जा रही थी। इसकी जानकारी मिलने पर मोहन भैय्या खुद ही धरना स्थल पर पहुंच गए और माइक लेकर प्रदर्शनकारियों को घटना की जानकारी दी।

रायपुरSep 17, 2018 / 06:14 pm

Ashish Gupta

Chhattisgarh Assembly Elections

CG Election 2018: जब अपने खिलाफ हो रहे धरने में पहुंच गए थे मोहन भैया

रायपुर. बात 2004 की है। दुर्ग के पूर्व सांसद मोहनलाल जैन यानी मोहन भैया गरीबों की कोई समस्या लेकर नगर निगम पहुंचे थे। कई बार अधिकारियों से कहने के बाद भी समस्या का समाधान नहीं हो पाया था। ऐसे में उन्होंने हिंदी भवन में तत्कालीन नगर आयुक्त से मुलाकात कर समस्या रखी।
आयुक्त ने सकारात्मक जवाब नहीं दिया तो दोनों के बीच तीखी नोकझोंक भी हुई। इस विवाद को भुनाने के लिए मोहन भैय्या के विरोधी सक्रिय हो गए और पुराना बस स्टैंड पर धरना दिया। धरने के दौरान मोहन भैय्या के खिलाफ एफआइआर दर्ज करने की मांग की जा रही थी। इसकी जानकारी मिलने पर मोहन भैय्या खुद ही धरना स्थल पर पहुंच गए और माइक लेकर प्रदर्शनकारियों को घटना की वास्तविक जानकारी दी। इसके बाद धरना प्रदर्शन स्वत: ही समाप्त हो गया।

तरुणाई से ही थी सेवाभाव की ललक

मोहन भैया का जन्म 18 अक्टूबर 1934 को राजस्थान के जयपुर में हुआ, लेकिन उनकी कर्मस्थली अविभाजित दुर्ग जिला ही रहा। वर्ष 1947 में वे अपने परिवार के साथ दुर्ग आ गए थे और 18 वर्ष की उम्र में ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़कर सेवा के क्षेत्र में सक्रिय हो गए।

19 माह रहे मीसाबंदी के रूप में जेल में

आपातकाल का विरोध करने पर उन्हें जेल भी जाना पड़ा। वे लगभग 19 माह उन्हें जेल में रहे। इसके बाद वर्ष 1977 में हुए लोकसभा चुनाव में मोहन भैया को जनता पार्टी ने उम्मीद्वार बनाया। इस चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के चंदूलाल चंद्राकर को शिकस्त देते हुए कांग्रेस का दुर्ग छीन लिया।

कांग्रेस के खिलाफ फूंका विरोध का बिगुल
वर्ष 1967 में दुर्ग विधानसभा के चुनावी मैदान में वे जनसंघ से कांग्रेस प्रत्याशी रत्नाकर झा के विरुद्ध उतरे थे। इस चुनाव में उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा, लेकिन कांग्रेस के इस गढ़ में उन्होंने सेंध लगा दी थी। उन्हें 22 प्रतिशत वोट मिले। इस तरह दुर्ग में पहली बार कांग्रेस के विपक्ष के किसी प्रत्याशी की जमानत बची।
(जैसे कि उनके परिवार के करीबी राजेन्द्र पाध्ये ने बताया)

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