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रायपुर

छत्तीसगढ़ के अंगूर ‘महुआ

बिचार

रायपुरNov 30, 2018 / 08:18 pm

Gulal Verma

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छत्तीसगढ़ के अंगूर ‘महुआ

छ त्तीसगढ़ म रूख-राई, जीव-जंतुुुुुुुु, चिरई-चिरगुन के संगे-संग इहां के तीज-तिहार ले जुड़े जनउला पूछे के रिवाज हे। जेला हिंदी म पहेली कहे जाथे। ओही ल छत्तीसगढ़ी म जनउला कहे जाथे। जनउला ह किसिम- किसिम के जानकारी देवत ठट्ठा- दिल्लगी करे के तको कला आय। जंगल अउ खेत-खार म जगइया एकठिन पेड़ बर छत्तीसगढ़ म जनउला पूछे जाथे। जेहा अइसे हवय- ‘दखत म पिंयर-पिंयर, छुए म गुल-गुल, छै-छै ठन मेछा जामे, छुए म पुल-पुल।Ó ये जनउला के उत्तर आय ‘महुआ।Ó
पिंयर-पिंयर फूल महुआ ह बिकट कोंवर रहिथे। वोकर उप्पर म रूंआ जामे रहिथे। इही महुआ ह छत्तीसगढ़ के आदिवासी अउ गांव-गौेतरी म रहइयामन के जीवन-यापन खातिर अड़बड़ काम के जिनिस होथे। बिहान होय के बखत म महुआ के पेड़ ले महुआ फूलमन टप -टप टपके लागथे। महुआ पेड़ तरी जुगुर -जुगुर बरत दीया कस भुइंया म बगरे भराय रहिथे। ऐला बीने खातिर दाई, दीदी, बहिनीमन बड़े फजर टुकनी धर के महुआ बीने ल जंगल-जंगल चल देथे।
महुआ ह खाली मनखेमन के काम के नोहय, बल्कि ऐला चिरई- चिरगुनमन अउ जंगली जीव-जंतुमन बड़ा मन लगा के खाथें। आदिवासी समाज म महुआ फूल ले मंद बनाय के रिवाज हावय। महुआ ले बने मंद ल संस्करीत भाखा म ‘माधवीÓ अउ देसी बोलचाला भाखा म ‘ठरराÓ कहे जाथे। आदिवासीमन ल मदमस्त करइया महुआ ह पूजा-पाठ म तको बड़ उपयोगी होथे। कमरछठ पूजा म सुखाय महुआ ल परसाद के रूप म चढ़ाय जाथे। एक किसिम ले देखे जाय त छत्तीसगढ़ म सुखाय महुआ ह ‘किसमिस कस लागथे। ऐला पिसान म मिला के रोटी ‘महुअरीÓ् बनाय जाथे।
महुआ के पेड़ ह हमर देसभर म पाय जाथे। ऐकर पानामन बछरभर हरियर बने रहिथे। फेर फागुन-चइत के महीना म पिंयर-पिंयर होके पानामन पेड़ ले झर जाथे। पाना झरे के बाद महुआ के डारा-डारा म महुआ के कली के गुच्छा दिखे लागथे। जेला महुआ के कुचियई कहिथे। धीरे-धीरे कली बाढ़थे अउ पिंयर-पिंयर महुआ के गुदादार फूल अउ मोहक महक ह चारो कोती हवा के संग म बगरे लागथे। महुआ फूल देखे म अंगूर कस दिखथे अउ रसदार तको रहिथे। इही पाय के ऐला छत्तीसगढ़ के अंगूर कहे जा सकत हे। दूसर फूल कस महुआ के फूल ह झट के मुरझावय नइ, बल्कि तरोताजा दिखत रहिथे।
महुआ झरे के बाद ऐकर पेड़ म बदाम कस फर आथे। जेला डोरी कलेंदी अउ टोरा कहे जाथे। ऐला तरकारी के रूप म रांध के खाय जाथे। डोरी के भीतर तेंदू अउ चीकू के बीजा कस बीजा निकलथे। जेमा ले तेल निकाले जाथे। ये तेल ह बइलागाड़ी, गाड़ा के ***** म डारे के, दीया बारे के अउ दवा के रूप म तको काम आथे। तेल पेरे के बाद बीज के बांचे भाग ह जानवरमन के खाय के खली अउ खातू के काम म आथे। महुआ पेड़ के फर, फूल, बीजा, लकड़ी, पाना सबो जिनिस ह काम के होथे। ऐकर पाना ले दोना अउ पतरी बनाय जाथे।

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