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रायपुर

चटनी बासी

नानकीन किस्सा

रायपुरJan 28, 2019 / 06:52 pm

Gulal Verma

cg news

चटनी बासी

सुवाद साग-दार, भात-रोटी म नइये। सुवाद तो भूख म हवय। भूख ह सुवाद ल बढ़ा देथे। जब कड़क के भूख लाघथे त जरहा रोटी अउ नून छूर साग ह घलो गजब मिठाथे। कुंवरहा घाम करत रहय। सुकवारो कांदी लुवे बर गे रहिस। थर-थर, थर-थर पसीना, उकुल-बुकुल अउ भूख के बेरा लाहर-ताहर चोला लागत रहय। घर म कांदी ल पटकत सुकवारो कहिस- मंटोरा, का साग रांधे हस? मंटोरा कहिस- आगी नइ बारे हंव दीदी। अंगाकर रोटी रांधे रहेंव। रतिहा के बफउरी साग म खा डरेंव। सुकवारो देखिस- बासी माड़े हे। साग नइ रहय। भूख का नइ कराय। गोरसी म मिरचा ल भूंज डरिस। लसून-धनिया, नून-मिरचा ल ***** डरिस। बटकी म बासी, थरकुलिया म मिरचा के चटनी सुकवारो खावत हे। एकेक कउंरा म वो सुवाद हे जउन कोनो मेवा-मिठई म नइये। आत्मा तिरिप्त होगे। सुकवारो कहिस- वाह! भगवान तोर गजब लीला हे। ए भूख के लीला हे। जेन बासी ल हिरक के नइ देखत रहेंव, आज वोला परेम से खायेंव, पसीया ल पीयेंव। मंटोरा ह गावत-गावत कहिथे- ‘बटकी म बासी अउ चिमटी म नून। मंय काहत हंव बात सिखउनी, तंय धियान देके सुन। मया म जीयव, मया म मरव। मंटोरा- झन करावव अपन फदीता-हांसी। कहां जाबोन काबा-मथुरा-कासी। घर जम्मो तीरथ, अमरित चटनी-बासी।Ó
द्य डॉ. राघवेन्द्र कुमार राज, जेवरा-सिरसा (दुर्ग)

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