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रायपुर

दान के महिमा

नानकीन किस्सा

रायपुरFeb 28, 2019 / 07:57 pm

Gulal Verma

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दान के महिमा

एक गांव म लोहार-लोहारिन राहय। घर म चीज-बस सबो रहिस। फेर एकोझन लोग-लइका नइ रहिस। दूनोझन भगवान के अब्बड़ पूजा-पाठ करय। लोहार-लोहारिन ल बिसवास रहिस कि हमरे एक न एक दिन अउलाद हो ही। लोहारिन ह रोज चांउर दान करय। दिन बीतत गीस। लोहार-लोहारिन के एकझन बेटा होइस। भगवान ह तोर चांउर दान के फल दे दीस। लोहार ह लोहरिन ल कहिथे। दिन बीते बेटा के बिहाव होइस। बहू आइस तउन ह देखथे के सास ह रोजेच चांउर दान करथे। वोहा सोचिस अइसने म तो घर के चीज सिरा जही। एक दिन वोहा मट के अपन सास ल कइथे- तुमन चांउर के दान झन करे करव, सरी ल दान कर दुहू त हमन का ला खाबो। बहू ह कहिस ते कहिस, बेटा घलो ह कहिदीस। अब लोहारिन ल अब्बड़ दुख होथे। वोहा लोहार ल कहिथे- चल अब ये घर ले कहूं चलन, इहां हमर निस्तार नइ होवय। लोहार-लोहारिन दूनोझन घर ले निकल जथे। एकठन गांव म लोहार ह अपन पुरखा के धंधा ल चालू करिस। मेहनत ह रंग लइस अउ देखते-देखत लोहार-लोहारिन धनवान हो गे। मंदिर-देवाला धरमसाला सब बनवाय लागिन। ऐती बर लोहार लोहारिन के गेय ले उंकर बेटा-बहू के घर के धन ह खरके लगिस। एक दिन अइसन हो गे उंकर घर खाय बर दाना नइ रहिस तब सोचे लगिन अब तो घर म कुछू नइ हावे, चल दूनोझन कहूं कमाय-खाय बर जातेन। दूनोझन घर ले निकल गेय। जात-जात वोमन ल पता चलिस कि एकझन लोहार ह मंदिर-देवाला, धरमसाला सब बनवा हे। उहां जाके देखथे त लोहार-लोहारिन वोकरे दाई-ददा राहय। बेटा-बहू दूनोझन माफी मांगथे, त लोहारिन ह कहिथे- तुमन दान के महिमा नइ जानव। जइसन विद्यादान करे ले विद्या कम नइ होवय वइसने मनखे के धन ह दान करे ल नइ घटय।

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