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रायपुर

छत्तीसगढ़ के महाकवि : कपिलनाथ कस्यप

सुरता म

रायपुरMar 05, 2019 / 07:25 pm

Gulal Verma

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छत्तीसगढ़ के महाकवि : कपिलनाथ कस्यप

हमर छत्तीसगढ़ी भासा ल आज जउन ऊंचहा दरजा मिले हे वोकर बर बड़े-बड़े गियानिक- गुन्निक सपूतमन तप करे हें। छत्तीसगढ़ी बियाकरन तब बनगे रिहिस जब हिंदी म नइ बने पाय रिहिस। हीरालाल काव्योपाध्याय काहत लागय। वोमन बनइन छत्तीसगढ़ी के बियाकरन। बहुत पढ़े-लिखे, बड़े अधिकारी रिहिन हीरालालजी। ऊंकरे सही गजब विद्वान हमर महाकवि कपिलनाथ कस्यप के नाव हे।
तीन-तीनठन महाकाव्य छत्तीसगढ़ी म लिखइया महाकवि कपिलनाथ कस्यप के जनम जांजगीर जिला के पौना गांव म होय रिहिस। 6 मार्च 1906 के गांव पौना म जनमें महाकवि के हिरदे म छत्तीसगढ़ के गांव-गांव के परंपरा, तीज-तिहार बस गे। वो जमाना म मिडिल पढ़ के लोगन मास्टर, पटवारी हो जांय। तउन जमाना म महाकवि कपिलनाथ कस्यप ह परयाग म बीए करिस। अंगरेजी, हिंदी के विद्वान बनिस। तब छत्तीसगढ़ी के महाकवि बनिस। महाकाव्यमन ल दूनों भासा म पढि़स। महाकाव्य के महिमा ल समझिस तब जाके तीन-तीनठन महाकाव्य छत्तीसगढ़ी म लिखिस।
धन्न हे, छत्तीसगढ़ महतारी जउन ह एक से बढ़ के एक सपूत ल जनम दिस। 1900 म जनमें डॉ. खूबचंद बघेल ह छत्तीसगढ़ के मान-सम्मान अउ साभिमान बर लडि़स। उंकर से छ: साल छोटे रिहिस कपिलनाथ कस्यप। दूनों महापुरुस म गजब परेम रिहिस। दूनों साहित्य के बड़े काम करइया। डॉ. खूबचंद बघेल ह ऊंच-नीच, करम छड़हा, जरनैल सिंह जइसे नाटक लिख के अलख जगइस। छत्तीसगढिय़ामन के सपना रिहिस अलग राज, अलग पहिचान के। वोला सबले पहिली डॉ. खूबचंद बघेल ह पूरा करे के संकल्प लिस। उही परंपरा म हमर अलग-अलग छेत्र के सियानमन काम करिन। सबो समाज के सियानमन अपन-अपन हिस्सा के काम ल करिन तब रद्दा बनिस।
कपिलनाथ कस्यप ह हिंदी के बड़े बड़े गरंथ के टक्कर म छत्तीसगढ़ी के महाकाव्य लिखिस। भासा ल नवा संस्कार दिस। छत्तीसगढ़ी म तब जादा बड़े काम नइ होय पाय रिहिस। कस्यपजी ह नवा रददा बनइस। इहू ह संजोग ए के कस्यपजी के जनम के एक बछर पहली छत्तीसगढ़ी बियाकरन बनिस।
पढ़-लिख के पूरा तियारी के बाद कस्यपजी ह लेखन के मैदान म उतरिस। रेवेन्यू विभाग म अधिकारी के पद म काम करइया कस्यपजी ह डहर के फूल अउ डहर के कांटा दूनों ल चिनहिस। दूनों के जीवन म गजब महत्तम हे। रामकथा लिखिन त किरिस्न कथा ल घलो लिखिन। अंधियारी रात लिखिन त नवा बिहान घलो लिखिन। उंकर किताबमन के जउन सिरसक हे तौनें ल सोचे बर परथे। दूनों कोती देखे के उदिम करिन कपिलनाथजी कस्यप ह। रात हे त वोकर बीते के बाद बिहान हे। डहर म कांटा हे तब फूल तको हे।
छत्तीसगढ़ म गुरांवट बिहाव के गजब परंपरा हे। आजो अदला-बदली करके बिहाव निपटाय के कोसिस करे जाथे। गुरांवट बिहाव के सबो समसिया ऊपर कस्यपजी ह एके ठन अइसे किताब लिखे हे जैसन फेर कोनो अउ काम नइ करे सकिन। सीता के अग्नि परीक्छा उंकर अइसे गरंथ ए जेहा सीताजी के महिमा ल सही ढंग ले राखे के ऊंकर परयास के सेती जन-जन म लोकप्रिय हे।
‘लंका म रहि नारि धरम ला।
आइस होही चिटको आंच।
चिता बइठ के तन जरजाही।
आंच न आये पाही सांच।’
अइसन बात कस्यपजी ह लिखे हे। सती नारी के आचरन अउ वोकर बिसवास ल नवा ढंग ले छत्तीसगढ़ी म उतार के गजब उपकार करे हे।
राम राज के परिभासा सबो भासा के कविमन दे हें । फेर छत्तीसगढ़ी के महाकवि कपिलनाथ कस्यप ह जउन राम राज के परिभासा दिस, वोहा सबे ऊपर भारी हे।
परजा राज करमचारी मा भेद न चिटको।
भाग करे के अवसर चाहे आवय कतको।
पर दुख-सुख के राखय
फिकर अपन ले जादा।
आये कभु न देइन राज-काज म बाधा।
कस्यपजी ह जमीनी कवि ए। भासा के सबो गुन अउ रूप ल हमन ऊंकर रचनामन म देख सकत हंन। लंका दहन म वोमन जउन गारी-गल्ला के परयोग करे हे वोहा अपन ढंग ले अलग हे।
निसाचरिन सब रो-रो के गारी देवंय।
बेर्रा बेंदरा लेसिस सब कह रोवंय।
भडुवा लंका आके का कर देइस।
कऊन पाप के वोहर बल्दा लेइस।
ऐेमा बेर्रा अउभडुवा जउन गारी हे तेला गांव म रहइयामन सुने होहीं। सहर म ए तरा के गारी सुने बर नइ मिलय।
कस्यपजी ह डोंगहा संवाद लिखे हे। जेमा केंवट अउ सिरीराम दूनों छत्तीसगढिय़ा लागथे-
‘देख राम-सीता-लछिमन ल
झट ले देइन हांस
जो मन आवय कर ले केंवट
झिनकर अब उपहास।Ó

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