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रायपुर

बिदेसी संस्करीति अउ आधुनिकता के सेती बदरंग होगे होरी

का-कहिबे…

रायपुरMar 29, 2019 / 05:11 pm

Gulal Verma

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बिदेसी संस्करीति अउ आधुनिकता के सेती बदरंग होगे होरी

होरी तिहार कइसे मनाय जाथे? अइसन ना के एक-दूसर ल बगैर भेदभाव से उमंग-उछाह से परेम-पीरित ले रंग-गुलाल लगाथें। फेर, रंग के तिहार ह बदरंग हो जाए त? उछाह के जगा डर लागे बर धर लंय त? परेम-बेवहार के जगा गारी-गुप्तार, मार-पीट करे बर धर लंय त? रंग-गुलाल लगाय ल छोड़ रे वारसिन, पालिस, चिखला, गोबर, चिट चुपरे बर धर लंय त? सुग्घर बोले-बतियाय ल छोड़ के नसा म हुड़दंग करे बर धर लंय त?
आजकाल के होरी तिहार म अइसनेच होवत हे। हुड़दंगीमन अतेक अतलंग करथें के सीधवा मनखेमन घर के बाहिर घलो नइ निकलंय। माइलोगिनमन तो घर म खुसरे रहिथें। सहर म तो पुलिस के पहरा म होरी तिहार मनाय के नवा रिवाज सुरू होगे हावय।
होरी तिहार के दिन दरूवा, बदमास, सइतानमन के रंग-ढंग ल तो झन पूछव। कोनो सीधवा मनखे मिलिस, कोनो नारी-परानी दिखिस, तहां ले वोमन राक्छस बन जथें। अइसे माने जाथे के सतयुग, त्रेता, द्वापर जुग म राक्छस रहिस। वोमन साधु-महात्मा, रिसी-मुनिमन ल सतावंय। मनखे ल मार डारंय। माइलोगिनमन ऊपर अब्बड़ अतियाचार करंय। कलजुग म वोइसनेच राक्छसी करम करई ल नसेड़ी-भंगेड़ी, दरूवा मनखेमन सुरू कर देहें।
आजकाल के लोगनमन के तिहार मनई याने ‘दारू पियई, कुकरा-बोकरा खवई, दू-चार झन ल रे-बे कहई, झगरा-लड़ई, मरई-पिटई अउ कोनो खोर-खार म बेसुध होके परे रहई।’ होरी तिहार म फाग गवई, नगारा बजई, डंडा नचई, फूल-पत्ता ले घर म बने रंग-गुलाल लगई, पारंपरिक रोटी-पिठा बनई ह नदावत हे। समाज ल खुदे सोचे बर चाही के अइसन काबर होवत हे?
अब तो जादा घर म होरी खेले, रंग-गुलाल लगाय बर अवइया लोगनमन के सुवागत-सत्कार खाई-खजानी, रोटी-पिठा, ठेठरी-खुसरी ले नइ करके दारू अउ कुकरा-बोकरा ले करे बर धर लेहें। जेन घर म ‘दारू-कुकरा’ नइ मिलय, वोकर इहां होलियारामन पांव नइ धरंय।
होरी तिहार के ऐहा सबले दु:ख के बात आय के समाज अउ परवार ह अपन ‘अधार’ ल छोड़त हें। सबोझन जुर-मिल के परेम-बेवहार ले तीज-तिहार मनाय के परंपरा ल भुलावत हें। आजकाल तो होरी तिहार के नांव सुनके लोगनमन कुछु अनहोनी झन होवय कहिके भगवान के बिनती बिनोवत रहिथें। तभो ले कोनो ल हंसी- ठठ्ठा, उछाह, भाईचारा के होरी तिहार ल नसा, आधुनिकता अउ पस्चिमी संस्करीति के बाढ़त परभाव ले बचाय के चिन्ता-फिकर नइये।
गांव-घर के नान-नान बात ल लेके लोगनमन ल गांव- समाज ले निकलइया, वोकरमन के हुक्का-पानी, पौनी-पसारी बंद करइया समाज के ठेकेदारमन ए बस देख-सुन के तको अंधरा, भइरा, कोंदा बन गे हावंय, त अउ का-कहिबे।

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