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रायपुर

पढ़ई से परीक्छा तक

बिचार

रायपुरApr 03, 2019 / 04:30 pm

Gulal Verma

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पढ़ई से परीक्छा तक

हमन अपन लइका के पढ़ई बर पहिली जमाना म वोकर दूनों कान ल डेरी हाथ ले जेवनी कान अउ जेवनी हाथ ले डेरी कान ल पकड़ के देखन। पकड़ा जाय त इस्कूल म भरती करवा दन। पढ़ई के नाव ल लइकामन सुनतेच अंगना ले खोर-गली म नाचे बर लग जथे। ऐला नइ खांव- वोला नइ खांव। वोकर उदीम ल देख के मनाथन, बेटा ऐला पढ़बे त मास्टर बनबे, पटवारी बनबे, डाक्टर-इंजीनियर बनबे कहिके नवा-नवा सपना देखाथन। फेर, हमन ए नइ सोचन के ए सब बने बर सहीं गियान कोन कोती ले मिलही। ऐकर खातिर कोनो भटरी ह कहि दिस तेकर पिछलग्गू भागे ल लग जाथन या गुरुजी ह चना के झाड़ म चघाय के खातिर लइका के गुन ल बढ़ा-चघा के बताथे।
लइका के नखरा ल देखके दाई-ददा ह भरम म पर जथे। सब नवा-नवा चरितर के जगा-जगा इस्कूल खोले हे तेमा फंस के पेरा जथें। अपन गरब अउ दूसर के देखा-सीखी म लोगनमन पेराथें। गहूं संग घुन कस अपन लइका ल घानी म ढकेल देथें। हिजगापारी ल छोड़ के एक रद्दा ल बताबे तभेच लइका ह आघू बढ़ही। दाई-ददा ल एकमत होके लइका के सुग्घर भविस्य खातिर वोकर आत्मगियान ल जगाय बर चाही। ऐकरे से सही गियान मिल सकत हे।
पहली कक्छा ले दसवीं कक्छा तक करीब सोला बछर के उमर तक लइका के हर छेत्र, हर बिसय के गियान होही अउ भटके ले बचाय जा सकत हे। दाई-ददा, गुरुजी अउ मारगदरसक ल ए बात के सुरता रखे बर चाही कि अपन मंजिल डहर लइका जाथे के नइ। सच्चा गियान पाय खातिर खान-पान म बिसेस धियान रखे बर चाही। ‘जइसे खाबे अन्न, वोइसे होही मन।Ó तभे पढ़ई से लेके परीक्छा तक के यातरा म वोला सफल होय म कोनो रोक नइ सकय।
नरम पेड़ ल जइसे मोड़बे, तइसे बनही।
मटकी बनइया ल, जेन कहिबे तेन बनाही।
अइसने लइका ह होथे। दाई के मन अउ संस्कार ले। बचपन ह गुजरथे दाई के कोरा म, खेलत-खावत, सुतत ले। पइसा कमाय के फेर म, बेटा ल छोड़ दिस, नौकराइन के तीर। वोकर दसा ह बनही, जइसे हे नौकरानी के मन उदास। लइका ल मारे-पीटे ले, नइ बन सकय सदाचारी। पहिली तैं सुधर वो दाई, तब बन जही सुभ संस्कारी।
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