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रायपुर

भगवान जगन्नाथ स्वामी के हाथ

परब बिसेस

रायपुरJul 04, 2019 / 05:22 pm

Gulal Verma

cg news

भगवान जगन्नाथ स्वामी के हाथ

भ गवान के लास ह बोहावत-बोहावत ओडि़सा पहुंच गे? उहां के राजा ल सपना दीस। अपन देस राज के नेम धरम अनुसार भगवान के लास के आखिरी बिधि-बिधान ल पूरा करिस। भगवान के इच्छा ले मंदिर बनाय बर विस्वकरमा खुद अइस। महीनाभर म मूरति बनाय के करार होगिस। बिन बिंधना-बसुला, आरी के काय काम करत होही? रानी के मन म संका उपजगे। कतको बरजिस राजा। रानी नइ मानिस। करार के पहिली कपाट हेर दे गिस। कपाट खुलतेच बढ़ईमन गायब। सुग्घर-सुग्घर तीन ठिन बिन हाथ-गोड़ के मूरति तियार।
राजा सोचिस अइसन मूरति ल नइ पधारना हे। नावा बनवाय के सोचिस। फेर सपना आइस वोला। नावा झन बनवा इही मूरति म मेहा आवत हंव। ऐकरे परान-परतिस्ठा करवा। परान-परतिस्ठा के तियारी करावत कतको झिन बढ़ई करा हाथ-गोड़ बना के लगवाय के कोसिस करिस। कोनो हाथ-गोड़ फिट नइ बइठे। भगवान राजा ल सपना म फेर कहिस- तैं काबर कोसिस करत हस। पाछू जनम के परयस्चित अउ भुगतना ल भुगते बर मोला इही रूप म बइठे के नेम के पालन करे बर हे।
राजा परान-परतिस्ठा करवा तो दिस, फेर कोनो ल बलइस नइ। कोनो परजा वोकर दरसन नइ कर सकय। वो ला लागे कोनो हांसे झन। राजा के भगवान कइसे बिगन गोड़-हाथ के पधारे हे। एक दिन राजा ह भगवान ल सिकायत करिस। तेहा कहे रेहे मय तोर राज म आके बइठहूं तहांले तोर राज के बड़ बनौकी बनही। तोर राज के बिस्तार हो जही। फेर मोला लागथे अइसन काहिंच नइ होवत हे। अतका दिन नहाक गे। मोर हाथ म जगत के नाथ आगिस तभो ले मेहा उहीच कर ले एक पांव नइ खसके हंव।
भगवान कहिस- राजा के सरी बढ़ोतरी परजामन के उप्पर निरभर करथे। तैं परजामन ले मोला दूरिहा कर दे हस। वोमन ल मोर ले मिला। मोर दरसन करवा, तब कुछ बात बनही। तोर राज म मेहनत करइया मनखे के कमी हे। इहां के मन अउ कोनो मोर नाव लेवइया नइये। तेकर सेती तोर राज के दुरदसा हे। हमर हाथ के किरपा ले ऐमन रथ बनाय के मेहनत करे के संगे-संग लकड़ी-फाटा देखके अपनो बर नांगर-बक्खर बना डारहीं। अपन डोंगा-डोंगी ल सुधार डारही। माने, इही बहाना मेहनत करे बर सीख जहीं। बरसात के समे ल ऐकरे बर चुने हंव के ऐकरे पाछू अपन खेत-खार म मिल-जुल के कमाहीं। रथ बनावत आपस के मनमुटाव ल भुला जहीं। मोर परति इंकरमन म भगती-भावना के आगी सुलगे लागही। अउ, जब भारी भरकम रथ ल मिल-जुल के खींचही तब तोर राज के दुस्मनमन इंकर एकता ल देख के अइसे पल्ला छांड़ भागही ते लहुंट के नइ देखंय।
राजा समझ गे। परजामन ल सकेल के समझा डारिस। लोगन के संगठन मजबूत होगिस। लोगन के बीच भगवान के नांव के जगा-जगा चरचा होय लगिस। रथ यातरा सुरू होगे हरेक बछर। तभु ले अभु तक चलत हे परंपरा रथ यातरा के। मनखेमन यातरा के काम म सहयोग करके अपन जीवन धन्य बनावत दुनिया ल बतावत हे के, दुनिया म हरेक काम असान हे। बस अपन हाथ ल जगन्नाथ के हाथ समझे बर हे। वास्तव म अइसे मनखे जेकर ले कोनो उम्मीद नइ रहय वोहा ‘अपन हाथ जगन्नाथ कहिकेÓ सरी बूता ल अकेल्ला निपटा डरत हे।

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