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रायपुर

निंदा-चारी करई ह नदाय के कोनो उम्मीद नइये!

का-कहिबे…

रायपुरSep 17, 2019 / 05:23 pm

Gulal Verma

निंदा-चारी करई ह नदाय के कोनो उम्मीद नइये!

निंदा-चारी करई ह नदाय के कोनो उम्मीद नइये!

ए क दिन एकझन मनखे ह अपन निंदा करइया याने निंदक ले कहिस- भाई तेहा तो कमाल के मनखे हस। तेहा जउन नेक काम करथस, वोकर से मोला अब्बड़ फायदा मिलथे। जइसे के तोर निंदा करे ले लोगनमन अब मोला बड़का मनखे समझे बर धर ले हें।
निंदक ह बोलिस, तोर निंदा-चारी करे ले महुं ल अब्बड़ फायदा हे। तोर बिरोधीमन ल जइसेच मेहा तोर आलोचना के दू सब्द सुनाथंव, वोमन खुस होके मोला चाय पियाथें, नास्ता करवाथें। अउ भला मोला चाही का?
वोहा कहिस- निंदक भाई! ऐकर सेती तो मेहा तोला अपन संग म रखथंव। हमन एक-दूसर के साथ देवत हंन। निंदक ह कहिस- हे निंदनीय मनखे, ए भोरहा म झन रहिबे। मेहा तोर नुकसानेच करहूं, भला नइ।
खैर वोहा निंदक ल चाय-नास्ता कराके बिदा करिस। पाछू वोहा अब्बड़ सोचिस कि निंदक के संग सलूक कइसे होय बर चाही। फिलिम ‘मेरा गांव-मेरा देसÓ के एकठिन गीत के जइसे -‘छोड़ दिया जाए कि मार दिया जाए, बोल तेरे साथ क्या सलूक किया जाएÓ या फिर संत कबीरदासजी के एकठिन दोहा -‘निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय, बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभायÓ के जइसे। संत कबीरजी के ए दोहा ल इस्कूल के किताब म आपमन पढ़े होहू, नइ पढ़े हव त सुने तो खच्चित होहू। ए दोहा के मतलब होथे – जउन हमर निंदा करथे, वोला अपन तीर म जादा रखे बर चाही। वोहा तो बगैर साबुन अउ पानी के हमर कमियां बताके हमर सुभाव ल साफ करथे।
आखिर म वो मनखे ह इही सोचिस कि निंदक ल तो अपन तीरेच म रहे बर चाही। काबर कि वोहा हमर बारे म बीसो किसम के वो बातमन ल घलो आस-परोस म फइला देथे, बता देथे, जउन बातमन ल हमन अपन मुंह से नइ कहि पावंन। इही सोच के वोहा फेर निंदक के तीर गिस अउ वोला बोलिस, निंदक भाई! चलव, मोला तोर खच्चित जरूरत हे। किरपा करके मोर वो किरायादार से ए कहिके आ जावव के वोहा बने मनखे नइये। वोकर लइकामन गुंडा-बदमास हें अउ वोकर घरवाली ह तो अब्बड़ लड़किंन हे, बात-बात म गारी देथे, बखानथे।
निंदा-चारी करइया ल भला का सरम! वोहा वोकर किरायेदार से वो सब बात ल कहिदिस, जेन बात ल वोहा बताय बर कहे रिहिस। किरायादार अब्बड़ गुस्सा होइस। वोहा थोकिन डररा घलो गे, त मउका ल देखत उहू ह कहिदिस- नइ जमत हे त मकान ल खाली कर दव।
किरायेदार ल बात लग गे। वोकर स्वाभिमान जाग गे। उहीच दिन तुरते मकान खाली कर दीस। वो मनखे ह निंदक के आभार मानत, वोकर बढ़ई मारत, वोकर गुन गावत बोलिस- तेहा मोर समसिया के निपटारा कर देच। तोर ऐ अहसान के बदला मेहा कइसे चुकाहूं। निंदक ह बड़ बेसरम मनखे कस कहिस- भुलाबे झन, तोला तो बदला चुकाय बर परही। वरना, मेहा वसूल करे बर घलो जानथंव। वोहा घबरा के कहिस- नइ, नइ भाई! अइसन झन करबे। मोला तोर जइसे निंदक के जरूरत आगू घलो परही।
दुनिया म निंदा करइया एक खोजबे त हजार मिल जहीं। निंदा-चारी करई ह तो जुगों-जुगों ले चलत आवत हें अउ नइ पता कतेक जुग तक चलही। निंदा करई ह कतकोन मनखे के धरम-करम बन गे हे, त अउ का-कहिबे।

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