नारी तोर बीरता ल सत्-सत् परनाम
नारी तोर बीरता ल सत्-सत् परनाम
आज समाज म नर अउ नारी एके समान हो गे हे। अइसे कोनो काम नइ होही, जेन ल नारी सक्ति नइ करत होही। आज बेटीमन पिता ल मुखाग्नि घलो देवथ हे। एक समे रहाय जब कोनो महिला मुक्तिधाम नइ जात रिहिस। समसान घाट के नामे सुन के डर लागय। आज उही नारी समसान घाट जाके ददा के पारथिव देह ल आगी देवथ हे। पिंडदान करथ हे अउ गंगा मैया जाके ***** ल विसरजन करत हे। ऐहा प्रगतिसील समाज के ***** हरे।
सुने-सुनाए बात म बिसवास नइ होवय, फेर आंखी देखी ह बिसवास जरूर होथे। मेहा देखेव कि समाज के जम्मो मनखे कटकटाय मुक्तिधाम म खड़े रहाय। बेटी ह सादा कपड़ा ओढ़े, हाथ म आगी ल धरे बीरतापूरवक सब ले आगू म आके ददा ल मुखाग्नि दिस। सबके आंखी म आंसू बोहाय लगिस। फेर, सबेझन वोकर तारीफ करिन। लोगनमन किहिस कि जरूर ददा ह सरग जाही, वोहा मुक्ति मिलही, मोक्छ मिलही। अतकेच नइ, दस दिन ले तरिया म जाके पानी देके अउ ंिपंडदान करके ददा के मुक्ति बर भगवान ले बिनती-पराथना करके समाज म नवा आदर्स स्थापित करिस।
नारी सुभाव ले कोमल होथे, फेर कोनो बड़े काम करेबर ठान लेथे तब वोकर सक्तिसाली रूप सामने आथे। मोला महान कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान के वो कविता सुरता आवत हे कि ‘खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी’।
मेहा सोचेव कि जब समाज म ‘बेटी बचाओ- बेटी पढ़ाओ’ अभियान चलत हे, तब अइसन बात सबझन बर प्रेरनादायी होही। पहली पुरुस परधान समाज म बेटामन ल ही महत्व मिलय, फेर अब बेटा अउ बेटी म कुछु भेद नइ रहिगे। हमन ल अपन बेटीमन के हौसला जनम से ही बढ़ाय बर पड़ही। जेकर ले वोमन मुक्त गमन म उड़ान भर सकंय। चाहे बेटा हो या बेटी अपन कुल, परम्परा अउ अपन संस्करीति के अनुरूप समाज गौरव के काम करंय, जेकर ले परिवार, समाज व देस के नांव ऊंचा होवय। फेर, बेटा अउ बेटी म कुछु भेद नइये। हमर देस भारत इही पायके महान हे कि इहां नारी सक्ति के पूजा करे जाथे। नारी तोर बीरता ल परनाम। गियान बर देवी सरस्वती, धन बर माता लछमी अउ सक्ति खातिर दुरगा मइया के पूजा करे जाथे। नारी के इही रूप समाज म घलो देखे बर मिलथे।
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