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रायपुर

कचरा के किसमत

कहिनी

रायपुरDec 02, 2019 / 04:16 pm

Gulal Verma

कचरा के किसमत

कचरा के किसमत

संतो के बिहाव के कतकोन बछर बाद बेटा होइस। तेन एक महीना बाद भगवान ल पियारा हो जथे। वोकर पाछू एक बेटी होथे, त गांव वालेमन कहिथें- ऐकर अंते-तंते नांव रख दव, त संतो ह नोनी के नाव कचरा रख देथे। काबर कि गांव वालेमन के मानना रहे कि जेकर लइका नइ जियय त ऊटपटांग असन नाव रखे ले टोटका हो जथे। गांव-देहात म ये सब बात के टोटका चलबे करथे। धीरे-धीरे कचरा नाव घर म बोलत-बोलत पूरा गांव वालेमन के जुबान म घला कचरा नाव चघगे।
कचरा अब्बड़ सांत सुभाव के रहिथे। बस वोकर रंग-रूप सांवला रहिथे। इस्कूल म नाव लिखाय के टेम बाबू ह बड़ मया ले स्यामली नाव धरथे। फेर ये नाव वोकर इस्कूल भर म बोले। आदत जेन सबके कचरा बोले के परे रहय। कचरा पढ़ई म अब्बड़ हुरियार रहय। देखत-देखत इस्कूल पाछू कालेज के पढ़ई पूरा हो जथे। घर म दाई के संग काम-बूता म हाथ लगाथे।
अब वोकर बिहाव बर सगा-सोदर देखथें त सांवला रंग के सेती वोकर बात अटक जथे। डीलडौल, आदत-बेवहार बने रहय, फेर बिहाव नइ लगय त दाई घलो खिसिया देवय। कचरा सोचथे, मोर नाव कचरा हवय त मोर जिंदगानी घलो कचरा कस होगे हवय। फेर, समझदार रहिस तो दू बूंद आंसू गिरा के चुप्पे अपन काम म लग जावय।
आसपरोस के मोहल्ला के मन के खाली समे म कपड़ा सिले के काम घलो करे लगिस। अइसने करत-करत दू-तीन बछर बीत जथे। पीछू बछर कचरे के बने संगवारी रहय राधिका तेकरो बिहाव हो जाय रहिथे। ये डहर राधिका के एकझन भाई रहिथे राधव तेनो बिहाव लइक रहिथे। वोकर महतारी परमिला दू बछर ले बहू देखत रहिथे। फेर, सबो म मीन-मेख निकालत रहिथे। कोनो परमिला ल पसंद नइ आवय। कोनो ल लम्बोकड़ी, कोनो ल नाटी त कोनो ल सकल-सूरत नइये कहिके मना करय। ये सब राघव ल बिलकुल बने नइ लगय। काबर कि वोहा पढ़े-लिखे रहय। छोकरीमन के अपमान वोला बने नइ लगय। कबहू कोनो नोनी पसंद आतिस त खान-दान, ठाठ-बाठ म बात अटक जाय। अइसने साल बीते लगिस।
ये डहर राघव ल बहिनी के सहेली कचरा मनेमन भाये लगिस। वोकर आदत-बेवहार, धीर लगाके बोलई सबो भागे। वोहा महतारी ले कचरा संग बिहाव के बात करथे त महतारी मना कर देथे। त दूनों बिहाव कर डारथे। कचरा के महतारी-बाप घलो खुस रहिथे, फेर परमिला राघव बर घर के कपाट सदा बर बंद कर देथे।
एक दिन राधिका के घर म छट्ठी-बरही के पूजा रहिथे। राधिका कचरा अउ राघव ल घलो नेवता दे रहिथे। उहां परमिला घलो रहिथे। कचरा ह सास ल देखके अचरा ले मुड़ी ढांक पाव परथे त परमिला घुच देथे। दिनभर कचरा राधिका के घर म काम-बूता समोथे। सगा-सोदर के आव-भगत, रंधई-गढ़ई, इज्जत ले सबो ले बात करई सब करथे। जेवन के बखत सास ल घलो परोसथे त सास समधि घर कुछु कहे तो नइ सकिस, फेर दू कौरा गटक के चुप्पे रेंग देथे। ये बात राघव अउ कचरा ल बने नइ लागय। फेर सोचथें चल दाई-ददा के आज दरसन होगे तेने बहुत हे।
दू दिन बात राघव के घर के कपाट बिहनिया ले कोनो अब्बड़ खटखटाथे। राघव हड़बड़ा के कपाट खोलथे त आगू महतारी परमिला रहिथे। जोर-जोर से कचरा कहिके घलो हांक पारथे। कचरा घलो मुड़ी ढांकत आथे अउ समझे नइ का होइस। फेर सास के पांव परे लगथे त परमिला राघव ल डाट के कहिथे- ये का कचरा-कचरा लगा रखे हस। बहू के कोनो नाव नइये का। राघव फुसफुसा के कहिथे- स्यामली। परमिला कहिथे- स्यामली बेटा चल आज नवरातरी के पहिली दिन हवय। मेहा लाली-लाली लुगरा, पोलखा, बिंदी-चुरी धरके अपन बेटी असन बहू ल लेय बर आय हंव। झटकुन बने तियार हो जा, घर म सबो सगा-सोदर रद्दा देखत हवंय।
स्यामली तियार हो ल जाथे त राघव ह महतारी ल पूछथे- वो दिन तो तेहां गोठियाय घलो नइ। आज अचानक का होगे! परमिला कहिथे- बेटा मेहा तन के सुंदरता खोजे म अतका बछर गंवा देंव। वो दिन स्यामली ल देख के मोर आंखी खुलगे। वोकर सुग्घर रखरखाव, बोल-चाल, पढ़े-लिखे होके घलो अतका धीर-गंभीर सुभाव देख के मेहा अपन आप म ग्लानि म रहेंव। ते पाय के चुप्पेचाप चल देंव। चल बेटा, आज सही मायने म तोर बिहाव होय हवय। घर म लछमी के रद्दा देखत हें।

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