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रायपुर

कपिलनाथ, दलित, पथिक, सरस ल सरद्धांजलि

सुरता म

रायपुरFeb 24, 2020 / 03:45 pm

Gulal Verma

कपिलनाथ, दलित, पथिक, सरस ल सरद्धांजलि

कपिलनाथ, दलित, पथिक, सरस ल सरद्धांजलि

फागुन महीना म बिलासपुर के बड़े कवि कपिलनाथ कस्यप के पुन्यतिथि हे। बिलासपुर के पौना गांव म 6 मार्च 1906 के जनमे रिहिन कपिलनाथ कस्यप। बड़े लेखक रिहिन डॉ. खूबचंद बघेल के संगवारी कपिल नाथ कस्यप ह। तीन बड़े महाकाव्य लिखे हें। सुराज के बारे म रामराज ल सुरता करके कस्यपजी ह लिखे हे – ‘परजा राज करमचारी मा भेद न चिटको। भाग करे के अवसर चाहे आवै कतको। पर दुख-सुख के राखय अपन फिकर ले जादा। आय कभू न देथिन, राजकाज म बाधा।
छत्तीसगढ़ राज बने के बहुत पहली से छत्तीसगढ़ी म लेखन करके नाव कमइया लेखकमन अब धीरे-धीरे बिदा होत जात हें। जुन्ना जमाना के बड़े लेखकमन के एक पीढ़ी हमन ल छोड़ के चलदिन। दुरूग के सिक्छक नगर म दूझन छत्तीसगढ़ी के बड़े कवि रिहिन। कोदूराम दलित अउ रघुबीर अग्रवाल पथिक। दलितजी ह कुंडली छन्द के छत्तीसगढिय़ा गिरधर कवि कहे जाथे। वोकर ले बीस-बाइस बछर छोटे रिहिन रघुबीर अग्रवाल पथिक। 15 फरवरी के पथिकजी परलोक सिधार गे। दलितजी ल गुजरे बीस बछर ले उपर होगे। दलितजी अउ पथिकजी सिक्छक नगर दुरूग म रहंय। सिक्छक नगर ल ये कविमन के नाव के सेती चीन्हें जाय।
रघुबीर अग्रवाल पथिक जउन दिन गुजरिस, उही दिन हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी के लेखिका प्रभा सरस के सरद्धांजलि सभा रिहिस। प्रभा सरस पथिकजी से बीस बछर छोटे रिहिस। प्रभा सरस पथिकजी, दलितजी सब सिक्छक रिहिन। प्रभा सरस लिखइया-पढ़इया महिलामन म अपन लेखन के सेती बहुत आगे गीस। वोकर लिखे किताब ल नेसनल बुक ट्रस्ट ह छापिस। अभी छत्तीसगढ़ के लोककथा के मेहा संपादन करे हंव। दिल्ली के प्रभात प्रकासन म किताब छपे हे। ओ संकलन म प्रभा सरस के लोककथा हे। किताब ल प्रभा सरस नइ देख पइस। आजेकाल म किताब छप के अवइया हे। हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी दूनों म लिख के नाव कमइया दू लेखक हमर सहर म बिदा होगे।
रघुबीर अग्रवाल पथिक ह साजा तीर के गांव मोहभट्टा म 1937 म जनमिस। पथिकजी ह चार डांड के कविता लिख के गजब नाव कमइस। वोहा चार डांड़ के कविता ल चरगोडिय़ा काहय। चरगोडिय़ा माने चार गोड़ के कविता।
हमर देस अउहमर गांव म होगे अइसन लचारी, हमरे भुइंया हमरे भाखा, अउ दूसर के हकदारी मालिक बर बइठे हे पहरा, आगे समे गजब अलकरहा । दुलहिन बर पतरी तक नइये हे, बजनिया बर घारी। ये हमर छत्तीसगढ़ के हाल के बरनन पचीस बछर पहली पथिकजी करिस। सिंगार रस, रितु बरनन, छत्तीसगढ़ के गांव जवनहामन के संसार धान के खेत, सबो बिसे म पथिकजी के कलम गजब चले हे।
‘एक गांव म कवि सम्मेलनÓ वोकर जोरदरहा कविता ए। गांव म नाचा पेखन होथे। कवि सम्मेलन ल नाचा समझ के गांव के मन अइन। नचकाहरिन, लोटा वाली परी नइ देख के खिसिया के चल दिन। बरनन ल कवि सम्मेलन कविता म पथिकजी ह करे हे। ऐहा हास्य रस के बड़ सुग्घर कविता ए। भ्रस्टाचार के खिलाफ पथिकजी ब़हुत अकन कविता लिखे हे। देखव एकठन कविता के भाग –
बइमानी हरियावत हे, अइलावत हे ईमान,
झूठ लबारी अउ फरेब के उपजत हवे खदान
चगलत हवे मजा म मनखेपन ला भ्रस्टाचार
आम आदमी के खाये बर महंगाई के मार।
पथिकजी ह भ्रस्टाचार, महंगाई ऊपर बहुत अकन कविता लिखे हे। वोहा गुरुजी रिहिस। अच्छा आचरन, देस प्रेम, नियम के बात ऊंकर कविता म बहुत हे। देस के हालत ल देखके पथिकजी बियाकुल होके लिखे हे –
ओ सुराज के सूरज देवता, कब अंजोर आही, हमरो घर तुंहर योजना के रूपिया हर,
खर्चा होवत हे काकर बर, हमर भूख अउ हमर गरीबी, जस के तस तो माड़े हावे,
मरका भर के गूर सिरागे, चांटी हर दुब्बर के दुब्बर।
पथिकजी हाना, कहावत ल कविता म सुग्घर ढंग ले फुंदरा ***** सजा दय। एक कविता म, नठाना अऊंसना सब्दमन ल प्रयोग करके बहुत लोकप्रिय कविता लिखे हे पथिकजी ह।
पथिकजी के कविता म अंजोर अउ अंधियार के बेर-बेर उपयोग होय हे।
भाग जाय दुख पीरा के रतिहा अंधियारी।
आ जाय छत्तीसगढ़ में सुख के देवारी।
चल संगवारी कोरी कोरी दीया बार बो।
चारो कोती ओरी-ओरी दीया बार बो।
ये कविता ह हमन ल कोदूराम दलित के कविता – ओरी ओरि दीया बार दे नोनी के महतारी, ऐकर सूरता देवाथे। छत्तीसगढ़ के बड़े कवि दानेस्वर सरमा के गुरु रिहिस दलितजी ह। दलितजी ल गुरु बरोबर मानय पथिकजी ह। दलितजी बरोबर उपनाम पथिक राख लीस रघुबर अग्रवाल ह। पथिक अउ दलितजी हमर छत्तीसगढ़ी के बड़े कवि रिहिन।
छत्तीसगढ़ के बहुत बड़े कवि संत पवन दीवान के पुन्य तिथि हिंदी महीना के मुताबिक 15 फरवरी के परे रिहिस। दीवानजी ह गद्य कम लिखे हे। फेर अपन महतारी अउ बाप के ऊपर जौन लेख हे वोहा मन म बस जथे।
छत्तीसगढ़ के बड़े कवि कपिलनाथ कस्यप, कोदूराम दलित, संत पवन दीवान, रघुवीर अग्रवाल पथिक अउ प्रभा सरस ल सरद्धांजलि। सबे कविमन छत्तीसगढ़ के समता, एकता, परेम, मेल-मिलाप के बात करे हें। सबोमन के भाव ल संत पवन दीवान ह अपन कविता म सकेले हे – ‘हिन्दू भाई ला जय सिरीराम, मुसलामान ला करंव सलाम, धरती बर तो सबो बरोबर, का हाथी का चांटी रे भइया, तोर धरती तोर माटी।Ó

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