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रायपुर

सोधपरक साहित्य के रचयिता दसरथ मांझी

बिचार

रायपुरOct 29, 2020 / 04:26 pm

Gulal Verma

सोधपरक साहित्य के रचयिता दसरथ मांझी

सोधपरक साहित्य के रचयिता दसरथ मांझी

छत्तीसगढ़ के गवई गांव म रहन-सहन, खान-पान, नता-रिस्ता, पहनावा, सिंगार अउ बोली-भाखा के अलगेच महत्ता हावय। हम देखथन, सुनथन, महसूस करथन फेर ओला लिखे के बारे म सोचथन तव बिसय ह छोटकून लागथे। ये डहर काकरो धियाने नइ जाए। अउ जेन कोति काकरो धियान नइ जावे उही म दसरथ लाल निसाद के जबर कलम चलथे। गंवई गांव के लोक जीवन ल उजागर करत उंकर अब तक दू कोरी किताब छपगे हाबे। अउ अतकेचकन पांडुलिपि छपे के अगोरा म हावय।
दसरथ बबा ह छत्तीसगढ़ के पहिली अइसे साहित्यकार आए जेमन ग्राम्य जनजीवन ल रेखांकित करत सबले जादा किताब लिखे हावय। जइसे- छत्तीसगढ़ी सतसई, छत्तीसगढ़ के भाजी, छत्तीसगढ़ के कांदा, छत्तीसगढ़ के गांधी, छत्तीसगढ़ के पान, छत्तीसगढ़ के भक्तिन, छत्तीसगढ़ के बासी, छत्तीसगढ़ के मितानी, छत्तीसगढ़ के रोटी, छत्तीसगढ़ के फूल, छत्तीसगढ़ के मछरी-मांस, छत्तीसगढ़ के चटनी अउ गजब अकन।
दसरथ बबा के बारे म ये कहना गलत नइ होही के यदि आप डॉ. दसरथ लाल निसाद अउ उंकर रचना ल जानथो तब तो आप छत्तीसगढ़ ल जानथो, छत्तीसगढ़ के साहित्य, कला, संस्करीति ल जानथव। 83 बछर के सियानी उमर म आज वोमन के सरीर जवाब देदे हावय। हाथ-गोड़ नइ चले। तभो ले जिपरहा साहित्यकार दसरथ बबा ह अपन खटिया म कंप्यूटर वाला ल बइठा के नवा किताब के सिरजन म लगे हावय। सरीर भले थक गे हावय, फेर मन अउ आत्मा आज भी चेम्मर हावय, माटी के लाल के।
मगरलोड के दुरलवा आचार्य डॉ. दसरथ लाल निसाद ‘विद्रोहीÓ एक मध्यम किसान परिवार के गुनिक बेटा आए। संगम साहित्य समिति के माई मुड़ी। उंकर जनम तेंदूभाठा म 20 नवंबर 1938 के होइस। महानदी अउ पइरी के कोरा म बसे मगरलोड उंकर करमभूमि बनिस।
दसरथ बबा सोधपरक तथ्य लिखथे, चिंतन-मनन के बाद वोला कृति के रूप देथे। अब उंकर ‘छत्तीसगढ़ के कांदाÓ किताब म देखव 41 किसम के कांदा के उल्लेख हावय। जिमी कांदा, कलिहारी कांदा, गुलाल कांदा, केंवट कांदा, ढुलेना कांदा, डांग कांदा, करू कांदा, जग मंडल कांदा, बनराकस कांदा, बरकान्दा, केशरुआ कांदा। अइसने ‘छत्तीसगढ़ के भाजीÓ किताब म. गूमी भाजी, कोलियारी भाजी, मकोइया भाजी, भेंगरा भाजी, सेम्भर भाजीमन के सुवाद अउ लाभ तको बताय गे हावय। ‘छत्तीसगढ़ के सिंगारÓ किताब म 76 सवांगा के बरनन हावय। जेमा गहना, गुठा, गोदना अउ ओनहा पहिरे के विधि- विधान ह लिखाय हाबे। अइसने अड़तालिस पेज के छोटकुन ‘छत्तीसगढ़ के चटनीÓ किताब ल पढ़े म जीभ ह चटकारा लेथे अउ मुंह ले लार चुचवा जथे।

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