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रायपुर

भुइंया के बोझ

गोठ के तीर

रायपुरOct 25, 2021 / 04:38 pm

Gulal Verma

भुइंया के बोझ

भुइंया के बोझ

आजकल चारोमुड़ा गरवामन सडक़ म बइठे रहिथे। अइसे लागथे जइसे ऐमन धरना – परदरसन करत हें। फेर, अइसन घलो हो सकत हे कि चातर अउ सफ्फा भुइंया ल देख के बइठत हंोही। एक दिन बनेचमन लगाके इंकर कारन ल जाने बर फटफटी धर के सडक़ कोती गेंव। देखेंव अब्बड़ अकन गरुवामन बइठे रहंय। मंय कांदी- पैरा देंव। गरुवामन वोला देख के मुंह ल आन कोती टार लिन। जइसे कछु बात बर मोर ले रिसाए होही।
मंय अचरज म परगेंव। उहिच मेर थोरकुन दूरिहा म बछरूमन बइठे रहंय। जम्मो चारामन ल वोमन ल देंव। भूख मरत रहिन हबर-हबर खाए लागिन। पेटभर खा डारिन त वोमन ले मंय पूछेंव – कस रे बछरू हो तुंहर महतारी गायमन ल कोनो ठउर नइ मिलय कि रात-दिन सडक़ के मंझोत म बइठे रहिथें। काय सुख पावत होही? तुंहर सेती कतका परसानी होथे अवइया-जवइयामन ल। बस अतके कहे पाए रहेंव एकठिन बछरू ठाढ़े होगे अउ मोर बर बड़ गुस्सियागे अउ जोरहा अवाज म कहिस- हमन सडक़ म नइ बइठबो त अउ कहां जाबो। तुमन ल कोनो आन ठउर नइ मिलय जेन हमर चरवाही भांठा, भतका, मरघटी अउ तो अउ देवधामी के ठउर तको ल कब्जिया डारे हव। कोनो ठउर बांचे हे। खेत कोती जाथन त धान ल खाहीझन कहिके मारथव। बारी कोती जाबे त साग- सालन ल खाही कहिके मारथव। हमर बर जेल घलो बनाए हव। कांजी हाउस म भुखन-पियासा हमन ल अंधियार कुरिया म धांध देथव।
गरवामन के चारा बर नइ बांचे हे कोनो जगा
दूसरइया बछरू घलो अउ कहे लागिस कि पहिली तो हमन ल ‘गउ माता’ मान के पूजत रहिन। हमर दूध ल पीयंय, फेर अब तो हमर घर निकाला होगे हावय। कहुं अपन घर म नइ राखंय। जेन ल देखते तेन ह लाठी म मारथें। ऐती-ओती खेदरत रहिथें। तेकर सेती हमन सडक़ म बइठथन अउ चुप रहिके तुमन ल अपन बिरोध देखाथन। फेर, तुंहर आंखी हमर दुख दरद ल नइ देख पावय। सडक़ म बइठे-बइठे मोटर-गाड़ी म रेता के मरत जावत हन। फेर, तुंहर बखरी-बारी, खेत म नइ जावत हंन। तुंहर जिनिस ल नुक्सान नइ करत हंन। ये धरती, ये भुइंया ह लागथे सिरिफ तुंहरेच पोगरी आय। हमन तो जइसे भुइंया के बोझ होगे हंन।

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