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रायपुर

कब बदलही नारी के ‘नसीबÓ ह ?

का-कहिबे…

रायपुरMay 21, 2018 / 06:28 pm

Gulal Verma

cg news

कब बदलही नारी के ‘नसीबÓ ह ?

‘दरिंदा मनखेमनÓ मान ले हें के नारी के सोसन करई ‘मनखे जातÓ के जनमजात अधिकार हे अउ दु:ख-पीरा सहई ‘नारीÓ के नसीब हे। जुग-जुग ले नारीमन के होवत अपमान, अनाचार ल देख-सुन के ये बात ह सहीच कस लागथे! हमर देस म नारी के पूजा होथे। नारी ल धन, गियान, ताकत के देवी मानथें। नारीच ह महतारी होथे। फेर नारी उपर अतेक अतियाचार? बात सोचे के ऐ।
एकझन पूछिस- ये नसीब का होथे? समझदार ह बोलिस- ‘मान लेवई हÓ। पूछइया ह फेर पूछिस- का मतलब हे? समझदार ह समझइस- तेहा मान लेथस के कांही ‘बने होहीÓ। बने होगे त तेंहा मानथस के तेहा ‘किस्मतवालाÓ हस। अउ, बने नइ होइस, काम बिगड़ गे त मानथस के तोर भाग ‘फूटहाÓ हे।
पूछइया ह फेर पूछिस- याने नसीब ह अपनआप म कुछु नोहय। सब कुछ उही ए जउन ल मान लव? समझदार ह कहिस- एकदम सहीच ए। तेहा मान लेस के जउन होवइया हे, वोहा तो तोर हाथ म नइये। तेहा वोला जान नइ सकत हस। ये माने के बाद तेंहा, जउन होगे हे वोला देखथस अउ कहिथस इही मोर ‘नसीबÓ म रहिस। अइसने कतकोन नारीमन अपन संग होवत अतियाचार ल ‘नसीबÓ मानथें अउ जेन नारी ह नइ मानय तेंन ल समाज ह अतेक कोसथे के वोहा माने बर मजबूर हो जथे! आज नारीमन पुरुस के कंधा ले कंधा मिला के चलत हें। सबो दिसा म नारीमन आगू बढ़त हें। मनखे जात ह ये सब बात ल मानथें, फेर अमल नइ करंय।
हमर देस-परदेस म नारीमन से अनाचार, अतियाचार के घटना दिनोंदिन बाढ़त हे। समाज म गिरत नैतिकता अउ चरित के कतकोन मामला आगू आवत हे। गुरुजी मनके चरित ह घलो पताल म पहुंच गे। गुरु के पवितर नांव ल कलंकित करदीन।
सरकार बतावत हे के पुरुस-नारी समान हे। दूनों म कोनो भेद नइये। नारी अबला नइ, सबला के नारा लगवावत हे। फेर दु:ख-पीरा सहई ह नारीमन के नसीब बन गे हे। काबर के नारी के सोसन घर ले सुरू होथे। कहे बर तो नारी ह घर के मालकिन होथे। फेर, हुकुम चलथे आदमी के। वोकर पूछे बिना आड़ी के काड़ी नइ कर सकंय। जेन बेटा ल जनम देथे उही ह बड़े बाढ़थे तहां ले आंखी देखाथे। सिक्छित नारी के घलो सोसन होवत हे। इस्कूल, कालेज, आफिस कोनो जगा बुरी नजर वालेमन ले नइ बांचत हें।
‘नारीÓ वाकई म अतेक ‘बेचारीÓ हे के अनाचार, छेडख़ानी, अतियाचार तो वोकरे संग होथे अउ उहीच ल घर-परवार, समाज म बदनाम करे जाथे। वोकरे चरित उपर अंगरी उठाथें। अनाचारी, दुराचारीमन समाज म मुड़ उठाके चलथें, फेर भुगतइया नारी के घर ले निकलई मुसकुल हो जथे। वाह रे! दुनिया अउ तोर दुनियादारी! वाह रे! समाज अउ तोर समझदारी! वाह रे! अपन आप ल महान समझया मनखे अउ तोर छोटकुन सोच!
जब नारी अतियाचार, सोसन, अनाचार रोके के बात बहुतेच होथे, फेर नइ रोक सकत हें।। दरिन्दामन ल फांसी म लटकाय के मांग होथे। फेर, कोनो ल फांसी म नइ लटकावत हें। दुस्करमी अउ वोमन ल बचइयामन ल समाज ले बाहिर नइ निकालत हें, त अउ का-कहिबे।

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