फिकर झन करव, सराब दुकान बंद नइ होवत हे!
फिकर झन करव, सराब दुकान बंद नइ होवत हे!
देखव ना! गांव-गांव म राजनीति खुसर गे हे अउ घर-घर म सराब। निसा म झुमरत मनखे ल न घर-परिवार के चिंता हे अउ न राजनीति के गोठ करइयामन ल देस-समाज के। नसेड़ी- दरूहामन ले घर के लोगनमन हलाकान हें अउ नेतागिरी करइयामन ले जनता। लोकतंत्र हे भइया! कुछु बोलव, कुछु करव, कुछु देखव, कुछु सुनव, आपमन के मरजी।
सिरतोन! सरकार के बस चलय त गली-गली म दारू के दुकान खुलवा दंय। वइसे भी कउन मार के कम खुले हावंय। सांझ होइस तहां ले दारू भट्ठीमन म अतेक ‘भगतमनÓ सकला जथें, जतेक तो मंदिर-देवाला म घलो नइ रहंय।
भट्ठी ले निकले दूझन दरूहामन रंग-रंग के गोठियावत रहंय। हमर लोकतंत्र के असली गियानी कउन हें? अरे! नेता ले भला अउ कोनो गियानी हो सकत हे। अच्छा! नेतामन म महागियानी कोन हे? बिना गुने-बिचारे घलो कहि सकथस मंतरी। हां संगी! तेहा एकदमेच सहित कहेस। तभे तो हमर मंतरीजी ह सफ्फा-सफ्फा फरिया केकहि देय हे के – परदेस म एक्कोठन सराब दुकान ह बंद नइ होवय। सरकार के सराब बेचे ले अब्बड़ फायदा होवत हे। चुनई त तो निसफिकर रहव।
सिरतोन! दारू बर जादा दूरिया जाय के जरूरत नइ परय। बस थोकिन चलव अउ खुदे ले लव। नइते, कोनो जान-पहिचान, संगी-संगवारी कना मंगवा लव। दारू पीये बर तो संगीमन घलो ललचावत रहिथें। कतकोन तो अइसे पक्का सराबी हावंय के पूछव झन। अइसे तो रात-दिन खटिया म परे रहिथें, फेर थोकिन कान म कहि दव- चलबे का पीये बर। त कसम से मरत-मरत घलो खड़े होके संग चल दिही।
सिरतोन! मंतरीजी ह सराबीमन ल खुसखबर दे हे। परदेसभर म लोगनमन सराब दुकान बंद कराय, सराब बेचई ल परदेस म चुम-चुम ले बंद कराय बर मांग करत हें। धरना-परदसन घलो करथें। गारी-मार घलो खाथें। जेल के यातरा घलो कर आथें। फेर, सरकार ल फायदा होवत हे त, वोहा भला काबर सराबबंदी करही! वइसे सराब के सेती घर-परिवार बरबाद होवत हे। हर बछर कतकोन मनखे सराब पीये के सेती मर घलो जथें त कतकोन मनखे ल किसम-किसम के बीमार धर लेथे। अपराध बाढ़त हे। गांवमन के माहौल खराब होवत हे। नारी-परानीमन के रद्दा रेंगई मुसकुल होगे हे। डाक्टर-बइदमन घले सराब ल धीमा जहर कहिथे, फेर ये सब बात ले सरकार ल का मतलब हे!
सरकार ह सराब दुकान नइ खोलही त फेर वोकर तीर खरचा करे बर पइसा कहां ले आही! पइसा नइ आही त बजट कइसे बनही! बजट नइ होही त खरचा कइसे होही। खरचा नइ होही त ‘कमीसनÓ कइसे मिलही। तार से तार जुड़े हे। जब गुजरात, बिहार म सराबबंदी होय ले सरकार के बजट नइ गड़बड़ावत हे। लोगनमन सेहत-सुभाव, घर-परिवार सुधरत हे। तभो ले हमर राज म सराबबंदी करे बर सरकार ह आनाकानी करत हे, त अउ का-कहिबे।