फेसबुक पर लिखते थे संस्मरण, फॉलोअर्स बोले-किताब क्यों नहीं लिखते
डीएसपी अभिषेक ने करीब 8 महीने में किताब लिखी। इसका 90 प्रतिशत लेखन बिलासपुर में पदस्थापना के दौरान हुआ। डेढ़ महीने में ही उनकी किताब की 5 हजार कॉपी बिक चुकी है। छत्तीसगढ़ में पुलिस की नौकरी से पहले जीवन बनारस और दिल्ली के इर्द-गिर्द गुजरा। जिसमें प्यार पॉलिटिक्स और ब्रेकअप का तानाबाना था। फेसबुक पर शॉर्ट संस्मरण लिखने लगे। फॉलोअर्स ने कहा कि किताब लिखनी चाहिए। प्रशंसकों और रायपुर के नागेंद्र दुबे के कहने पर बुक लिखने का मन बनाया। किताब में बीएचयू में अपने छात्र जीवन की आवारागर्दी, नेतागिरी, वर्चस्व की लड़ाई, दिल लगना और टूटना, मुखर्जी नगर, पढ़ाई छोड़ अन्ना आंदोलन में सहभागिता, निर्भया कांड के दौरान प्रोटेस्ट, लाठीचार्ज, सीजीपीएससी में सलेक्शन और पुलिस की नौकरी का रोचक संस्मरण लिखा गया है।
इसलिए की जा रही पसंद
किताब की पसंदगी के पीछे सरल और रोचक हिंदी बताई जा रही है। देश-काल और परिस्थितियों के हिसाब से शब्द-शैली में खासा बदलाव नहीं किया गया है। कहानी में जो वाकिये हैं उनमें से हर युवा कभी न कभी टकराया है।यह सीख मिल रही
– खुलकर जियो: जिंदगी को खुलकर जियो लेकिन एक लक्ष्मण रेखा जरूर होनी चाहिए।– जज़्बा बना रहे: जीवन में कई रुकावटें आएंगी लेकिन जज़्बा ऐसा हो कि उन्हें रौंदते हुए आप आगे बढ़ जाएं।
– दिल टूटे पर हिम्मत नहीं: नायक को प्रेम में दो बार असफलता मिलती है लेकिन उसे वह खुद पर हावी नहीं होने देता। जीवन में यह सामान्य घटना है।