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रायपुर

‘जरूरतमंद बेटियां इस कानून से खुद को सक्षम बना पाएंगी’

रायपुर. सुप्रीम कोर्ट ने पिता की संपत्ति पर बेटियों के अधिकार को लेकर एक अहम आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा है संयुक्त परिवार में रह रहा कोई व्यक्ति अगर वसीयत किए बिना मर जाए, तो उसकी संपत्ति पर उसकी बेटी का हक होगा। इस पर हमने कुछ लोगों की राय जानी। इन्होंने फैसले को सराहा और बेटियों के लिए बेहतर माना है।
 
 

रायपुरJan 22, 2022 / 07:27 pm

Devendra sahu

'जरूरतमंद बेटियां इस कानून से खुद को सक्षम बना पाएंगी'

शहरवासियों ने बेटियों के हक पर फैसले को सराहा

बहुत सही निर्णय है
हक बेटा ओर बेटी को सामान ही मिलना चाहिए क्योंकि माता-पिता की संपत्ति में अधिकार बच्चों का ही होता है। फिर वो बच्चा लड़का हो या लड़की। अक्सर देखा जाता है कि लड़की की शादी के बाद उसे ये कह दिया जाता है कि तुम्हारी शादी में इतना इतना खर्च हुआ। बेटी की शादी को घर की प्रॉपर्टी से जोड़ कर देखा जाने लगता है कि तुम्हारे में इतना खर्च हुआ इसलिए भाई से कभी मायके में हिस्सा बटवारा मत मांगना।जो गलत है। शादी करना जिम्मेदारी है माता-पिता की। इसलिए उसे वसीयत से न जोड़ा जाए। जो कि गलत है। बेटा- बेटी की परवरिश एक समान,पढ़ाई एक समान,शादी एक समान, फिर संपति में अधिकार एक समान क्यों नहीं। एक बेटी शादी के बाद मायके में भी हिस्सा न पाए।और ससुराल जाए तो वहां का भी हिस्सा बेटा पाए और बहू नहीं। अगर ससुराल अच्छा निकला तो बहू राज करेगी। ससुराल अच्छा न निकला तो ससुराल से बेघर हो जाएगी। तो बेटी का क्या हुआ? कुछ नहीं। इसलिए अधिकार बराबर होना चाहिए। संपति का बंटवारा बच्चों में होना चाहिए न कि लड़का-लड़की देख कर।
-नीतू श्रीवास्तव, संस्थापिका/ अध्यक्ष श्रुति फाउंडेशन


मिलेगा खोया अधिकार
बे टी का भी पिता की संपत्ति पर पूरा अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को हिंदू महिला के संपत्ति में उत्तराधिकार पर अहम फैसला सुनाते हुए कहा है कि बिना वसीयत के मरने वाले हिंदू पुरुष की बेटी पिता की स्वअर्जित और उत्तराधिकार में मिले हिस्से की संपत्ति विरासत में पाने की अधिकारी है और बेटी को संपत्ति के उत्तराधिकार में अन्य सहभागियों (पिता के बेटे की बेटी और पिता के भाइयों) से वरीयता होगी। इसके अलावा कोर्ट ने वसीयत के बगैर मरने वाली संतानहीन हिंदू महिला की संपत्ति के उत्तराधिकार पर फैसला सुनाते हुए कहा है कि ऐसी महिला की संपत्ति उसी मूल स्त्रोत को वापस चली जाएगी जहां से उत्तराधिकार में उसने संपत्ति प्राप्त की थी। सुप्रीम कोर्ट के इस अभूतपूर्व निर्णय से बेटियों को खोया अधिकार मिलेगा, अब जो जरूरतमंद बेटियां है वो इस कानून से अपने आपको सक्षम बना पाएगी, अपने अधिकारों के लिए खड़ी हो पाएगी, बेटियों को आर्थिक सहयोग और सुरक्षा मिलेगी, आज के निर्णय से समाज मे बेटियों को बराबरी का दर्जा प्राप्त होगा । -अंजलि जैन, एडवोकेट


बेटियां भी बेटों की तरह जिम्मेदारी का निर्वहन करें
यह बेहद ही सराहनीय निर्णय है जिसकी समाज मे सन्तुलन बनाने में अहम भूमिका होगी। वास्तविक अर्थ में इससे संविधान की मूल भावना को यथार्थ रूप दिया जा सकेगा जो बराबरी के अधिकार की बात कहता है। साथ ही इससे सम्पत्ति विवादों में कमी आएगी । ये साहसिक निर्णय है । कई बार भाई सम्पत्ति की लालच में बहन से उसकी प्रोपर्टी इमोशनल अत्याचार करके या शातिराना ठंग से हथिया लेते हैं। ऐसे में अब बेटियों के पास उनके उत्तराधिकारी होने का हक़ मिल पाएगा। इसमें बेटे और बेटियों के लिये कोई भेदभाव नहीं है। अब बेटियां भी अपने जीवन में आगे बढ़ पाएंगी । इसमें ये भी समझना होगा कि बेटियां भी अब बेटों की तरह ही अपनी हर जि़म्मेदारी का निर्वहन करे जो बेटे करते हैं ताकि किसी तरह की हीन भावना जागृत न हो ,जैसे अंतिम संस्कार में भी बेटों की तरह ही भूमिका अदा करना । यह महिला सशक्तिकरण के लिये एक सराहनीय कदम है। – भगवान दास गुहा

फैसला परिवर्तनकारी
न्यायालय का स्वागत योग्य फैसला है। माता- पिता के लिए संतान में फर्क नहीं होता फिर भी समानता के आधार पर यह फैसला परिवर्तनकारी व अनुपालनीय है। भारतीय न्याय व्यवस्था को नमन। बेटियों का सम्मान करना हमारा दायित्व है। यह सार्थक पहल है। -रामगोपाल शुक्ला


पीढ़ी लाभान्वित हो सकेगी
मेरी राय यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने बेटियों का जो दायरा बढ़ा दिया उससे मैं सहमत हूं । क्योंकि किसी भी परिवार के बेटा-बेटी को अपने माता-पिता के द्वारा मिली संपति पर बराबर का अधिकार मिलना चाहिए। किसी भी तरह का भेदभाव नहीं होना चाहिए। यह एक नई पहल है जिससे आने वाली पीढ़ी लाभान्वित हो सकेगी
-योगिता जीवने, असिस्टेंट प्रोफेसर

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