अधिगृहीत जमीन में 1707 किसानों की 1764.610 हेक्टेयर निजी जमीन भी शामिल थी। अधिकतर किसानों ने मुआवजा ले लिया था, लेकिन सैकड़ों आदिवासियों ने मुआवजा लेने से मना कर जमीन नहीं छोडऩे का फैसला किया था। सरकार के साथ एमओयू की कई बार बढ़ाई गई अवधि भी खत्म होने के बाद 2016 में टाटा ने बस्तर को टाटा कर लिया। निवेश की संभावना खत्म होने के बाद भी सरकार ने किसानों को वह जमीन वापस नहीं की।
स्थानीय किसान लंबे समय से वह जमीन वापस पाने के लिए आंदोलन कर रहे थे। टाटा की विदाई के बाद जनवरी 2016 में ही बड़ांजी में बड़ा आंदोलन हुआ। कांग्रेस के नेतृत्व में प्रभावितों ने चक्काजाम किया। कलक्ट्रेट का घेराव हुआ। विधानसभा में भी कांग्रेस ने मामला उठाया। सीपीआइ ने भी कई आंदोलन किए। सरकार के इस फैसले से स्थानीय आदिवासी किसानों को उनकी जमीन वापस मिलेगी। वहीं औद्योगिक घरानों पर भी समय से परियोजनाएं पूरा करने का दबाव रहेगा।
इन गांवों को वापस मिलेगी उनकी जमीन
संयंत्र के लिए जिन गांवों की जमीन अधिग्रहित की गई थी, उनमें लोहांडीगुड़ा तहसील के छिंदगांव, कुम्हली, छिंदगांव, बेलियापाल, बडांजी, दाबपाल, बड़ेपरोदा, बेलर और सिरिसगुड़ा व तोकापाल तहसील का गांव टाकरागुड़ा शामिल है।
कांग्रेस का चुनावी वादा
कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने 10 नवम्बर को बस्तर में प्रचार के दौरान लोहंडीगुड़ा के किसानों को उनकी जमीन दिलाने का वादा किया था। कांग्रेस के जनघोषणापत्र में भी यह वादा था कि अधिग्रहण की तारीख से पांच वर्ष के भीतर उसपर परियोजना स्थापित नहीं हुई तो वह जमीन किसानों को वापस कर दी जाएगी।