सेवा में बढ़ती मुश्किलें
अभी पिछले दिनों सोशल मीडिया पर नारायणपुर जिले में नव चयनित आरक्षकों की वो तस्वीरें तेजी से वायरल हुई थीं, जिनमें उनसे मजदूरी कराई जा रही थी। उन तस्वीरों में आरक्षक ईंट, सीमेंट, बालू से दीवार को जोडऩे का काम कर रहे थे। पिछले चार वर्षों में माओवाद प्रभावित इलाकों में पुलिस बल के जवानों के मौत के आंकड़े तेजी से बढ़े हैं। ज्यादातर की उम्र 20 से 30 वर्ष के बीच रही है। नाम न छापने की शर्त पर नारायणपुर में तैनात एक जवान बताता है कि यह मान लिया गया है कि हम शहीद होने के लिए ही भर्ती हुए हैं। शायद भर्ती में इतनी छूटें इसीलिए ही दी जाती हैं, लेकिन भर्तियों के बाद हमारे साथ अमानवीय व्यवहार किया जाता है।
मजबूरी की नौकरी
केंद्रीय गृह मंत्रालय अपनी रिपोर्ट में बताता है कि छत्तीसगढ़ में डीजीपी से लेकर कांस्टेबल स्तर तक के पुलिसकर्मी अपनी आवासीय सुविधा से बेहद नाखुश हैं। राज्य में आवासीय सुविधाओं को ठीक ठाक मानने वाले केवल 30 फीसदी से भी कम हैं। वेतन विसंगतियां भी जबरदस्त हैं। राज्य में नए कांस्टेबल के भर्ती होने पर उसे प्रारम्भिक वेतन 19500 दिया जाता है जो कि उत्तरप्रदेश, बिहार, ओडिशा समेत तमाम राज्यों में नए आरक्षकों के वेतन से बेहद कम है।