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रायपुर

हुनर ए-जज्बा: महिला ने बनाई बप्पा की मूर्ति, आज बनी करोड़ों महिलाओं के लिए प्रेरणा

आज गायत्री उन करोड़ों महिलाओं के लिए प्रेरणा है जो अकेलेपन में निराश और मजबूरी के अंधकर में जी रही।

रायपुरAug 26, 2017 / 01:37 pm

चंदू निर्मलकर

Ganesh Festival

Gagesh festival

चंदू निर्मलकर@रायपुर. दो पल की ही जिंदगी है, उसे जीने के सिर्फ दो उसूल बना लो, रहो तो फूल की तरह और बिखरे तो खुशबू की तरह.. कुछ इसी इरादे व दृढ़ संकल्प के साथ जी रही मूर्तिकार गायत्री प्रजापति। पति के गुजरने के बाद गायत्री हिम्मत नहीं हारी और अपने बच्चों का भविष्य गढऩे के लिए दिन रात एक कर मूर्ति बनाने के काम में जुट गई। आज गायत्री उन करोड़ों महिलाओं के लिए प्रेरणा है जो अकेलेपन में निराश और मजबूरी के अंधकर में जी रही।
राजधानी के विवेकानंद आश्रम के पास रहने वाली महिला गायत्री प्रजापती हाथ मिट्टी से सने हैं। वह सिर्फ मिट्टी की मूर्ति में जीवन नहीं डालती। बल्कि अपने इस हुनर से अपने बच्चों की भविष्य भी गढ़ रही है। सुबह घर का काम खत्म होते ही बांस और तालपत्री से बनाए तंबू में पहुंच जाती है। तंबू में भगवान गणेश की मूर्ति संवारने में लग जाती है। कुछ समय बाद गायत्री का 19 साल का बेटा निलेश और बेटी दिशा भी पहुंचते हैं। दोनों मां के साथ मूर्तियां बनाने में जुट जाते हैं। मूर्तियां बनाने और उसमें रंग भरने का काम रात 2 बजे तक चलता है। गायत्री से बात करने पर पता चला कि वे सुबह से रात तक भगवान गणेश की मूर्तियां बनाती है। पहले यह काम उसके पति नरेन्द्र करते थे लेकिन उनकी मौत हो जाने के बाद गायत्री ने मूर्ति बनाने का निर्णय लिया।
बच्चों की खातिर उठाई जिम्मेदारी
गायत्री ने बताया कि पति के बाद बच्चों की पढ़ाई और पालन-पोषण की चिंता सताने लगी थी। पति का सपना था कि बेटी शिक्षिका बने। गायत्री ने पति के सपने को अपना माना और उसे पूरा करने में जुट गई। मां को जिम्मेदारी उठाते देख बच्चे भी काम में हाथ बंटाने लगे।
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सास ने बढ़ाया मनोबल
गायत्री बताती है कि दो साल पहले फरवरी 2015 में पति के देहांत के बाद परिवार के सामने रोजी रोजी की समस्या पैदा हो गई थी। सासू मां ने ही मनोबल बढ़ाया और मूर्ति बनाने के काम को जारी रखने की प्रेरणा दी। इसके बाद उसने हुरन के दम पर पूरे परिवार का भार अपने कंधों पर ले लिया। अब बेटी दिशा खुशी से स्कूल जाती है। हालांकि बेटा निलेश मां की हालत को देखकर वह आगे की पढ़ाई नहीं कर सका। अब वह भी सुबह से देर रात तक मां के साथ मूर्ति बनाता है।
बच्चों को है मां पर गर्व
गायत्री के बेटे और दिशा का कहना है कि पिता के गुजरने के बाद मां ने परिवार की जिम्मेदारी बखूबी निभा ली है। यदि मां ने पिता से यह कला नहीं सीखी होती तो आज हम लोग दाने-दाने के लिए मोहताज हो जाते।
जनवरी से ही शुरू हो जाता है काम
गायत्री बताती है कि हर साल भगवान गणेश, दुर्गा व विश्वकर्मा की मूर्ति बनाने का काम जनवरी माह में शुरू हो जाता है। जो दुर्गा पूजा तक मूर्ति बनाने व बेचने का काम चलता है। दो से तीन माह ही खाली समय मिलता है। उन्होंने बताया कि इस साल भी गणेश की 10 से 15 फीट की मूर्ति बनाया है। जो शहर के प्रमुख चौंक व चौराहो में विराजेगी।
हिम्मत नहीं हारे, लड़कर जीए नई जिंदगी
आमतौर पर महिलाएं पति के गुजरने के बाद निराशा से घिर जाती है। उनके सामने खुद के जीवनयापन की समस्या खड़ी हो जाती है। इन हालातों में अकेली महिलाओं के पास तो ससुराल या तो मायके वालों पर आश्रित रहने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता। वहीं, कुछ महिलाएं इस दर्द को सहन ही नहीं कर पाती और आत्महत्या कर लेती है। गायत्री ने उन सभी महिलाओं का मनोबल बढ़ाते हुए हिम्मत नहीं हारने और कड़े संघर्ष कर नई जिंदगी जीने सीख दी है।
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