यह था मामला
जून 2011 में छत्तीसगढ़ पीएमटी की परीक्षा का आयोजन हुआ। इस दौरान स्टेशन इलाके के एक होटल में कुछ परीक्षार्थी पीएमटी की प्रश्नपत्र हल करते हुए पकड़े गए। 10 लोगों को गंज पुलिस ने पकड़ा। पूछताछ में विद्यार्थियों ने सत्येंद्र सिंह, बेदीराम, दीनाराम, मनीष सिंह, अखिलेश सिंह के द्वारा प्रश्नपत्र उपलब्ध कराकर नकल कराने की जानकारी दी। इसके बाद पुलिस सभी के खिलाफ 19 जून को अपराध दर्ज किया था।
आरोपियों का पूरा गिरोह था, जो छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश में पीएमटी के प्रश्नपत्र लाखों रुपए में बेचता था। इसके अलावा पीएमटी में चयन कराने का ठेका भी लेता था। मूल विद्यार्थियों के स्थान पर दूसरे विद्यार्थियों को बैठाकर करोड़ों रुपए की कमाई करते थे। आरोपियों ने ही वर्ष 2006 में हुई पीएमटी में भी कई मुन्नाभाइयों को बैठाया था। इस मामले में करीब दो साल पहले न्यायाधीश प्रभाकर ग्वाल ने आधा दर्जन लोगों को सजा सुनाई थी। इसके बाद उनका स्थानांतरण हो गया।
कहां से आया था प्रश्नपत्र
व्यापमं का प्रश्नपत्र आरोपियों तक आखिर कैसे पहुंचा? और उनसे विद्यार्थियों तक किसने पहुंचाया? पुलिस सात साल बाद भी इसका खुलासा नहीं कर पाई है। आखिर प्रश्नपत्र प्रिंटिंग प्रेस से पहुंचा या व्यापमं के अधिकारियों के माध्यम से? इसकी जांच भी नहीं हो सकी है।
पीएमटी पर्चा लीक मामले में तत्कालीन व्यावसायिक परीक्षा नियंत्रक डॉ. बीपी त्रिपाठी के लैपटॉप की जांच रिपोर्ट काफी मायने रखती है। पुलिस ने उनका लैपटॉप जब्त किया, लेकिन आज तक उनके लैपटॉप में प्रश्नपत्र और ईमेल से संबंधित कोई भी रिपोर्ट का खुलासा नहीं किया है। लैपटॉप की जांच रिपोर्ट आज तक नहीं आई है।