इस व्रत पूजन की कथा भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम के जन्म से जुड़ी हुई है। पं मनोज शुक्ला के अनुसार भाद्रपक्ष षष्ठी तिथि पर द्वापरयुग में बलराम का जन्म और अष्टमी तिथि पर भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था। इस षष्ठी तिथि पर पुत्रवती माताएं हल चले खेत में पैर नहीं रखती। न ही खेत के अनाज का भोग लगाती हैं। खेत में जो फसही धान उत्पन्न होती है, उसके चावल, महुआ को निकालकर भोग लगाती हैं। घर के आंगन में बावली खोदकर हर मोहल्ले में माताएं कथा सुनकर संतान की सुख की कामना करती हैं। इसके बाद उबला हुआ महुआ और पसहर चावल का भोग लगाकर व्रत खोलेंगी।
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