जीएसटी में लेट फीस बनी छत्तीसगढ़ के कारोबारियों के लिए सिरदर्द
वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) में विलंब शुल्क कारोबारियों के लिए सिरदर्द बनते जा रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि कई ऐसे कारोबारी है, जिनके टैक्स भले शून्य है, लेकिन लेटफीस हजारों रुपए में पहुंच चुका है। नियमों के मुताबिक जीएसटीआर-1 में विलंब शुल्क 200 रुपए प्रति महीने, जीएसटीआर-3बी में विलंब शुल्क 50 रुपए (टैक्स होने पर), जीएसटीआर-3बी में 20 रुपए (टैक्स नहीं होने पर) प्रतिदिन है।
जीएसटी में लेट फीस बनी छत्तीसगढ़ के कारोबारियों के लिए सिरदर्द
रिटर्न से राहत, लेकिन पेनाल्टी पर फैसला नहीं आया रायपुर. वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) में विलंब शुल्क कारोबारियों के लिए सिरदर्द बनते जा रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि कई ऐसे कारोबारी है, जिनके टैक्स भले शून्य है, लेकिन लेटफीस हजारों रुपए में पहुंच चुका है। नियमों के मुताबिक जीएसटीआर-1 में विलंब शुल्क 200 रुपए प्रति महीने, जीएसटीआर-3बी में विलंब शुल्क 50 रुपए (टैक्स होने पर), जीएसटीआर-3बी में 20 रुपए (टैक्स नहीं होने पर) प्रतिदिन है। राज्य सरकार ने जीएसटी रिटर्न के लिए मार्च, अप्रैल, मई महीने तक के लिए राहत दी है, वहीं इसका रिटर्न जून महीने के आखिरी में दाखिल करना होगा। इस तारीख में यदि रिटर्न दाखिल नहीं कर पाए तो इसमें चार महीने का लेट फीस लगेगा। छग सेल टैक्स बार एसोसिएश ने राज्य व केंद्र सरकार से मांग की है कि लेट फीस प्रकरण में गंभीरता से विचार करते हुए कारोबारियों को राहत दी जानी चाहिए। ऐसे कई पुराने प्रकरण हैं, जिसमें लेट फीस अधिक होने की वजह से व्यापारी जीएसटी नंबर ही रद्द कराना चाह रहे हैं। इसमें सरकार को राजस्व का नुकसान उठाना पड़ रहा है। प्रदेश में 10 हजार से अधिक ऐसे मामले हैं, जिसमें ज्यादा लेट फीस होने की वजह से डीलर्स रिटर्न दाखिल करने से हाथ खड़े कर रहे हैं, लेकिन उन्हें विभाग से लॉक-डाउन के पहले नोटिस मिल चुका है। हर महीने अधिकतम लेट फीस 10 हजार रुपए हो सकता है। ऐसे में कई ऐसे डीलर्स जिन्होंने 2 या 3 साल रिटर्न दाखिल नही किया है। भले ही उनका टैक्स शून्य है, लेकिन अब लेट फीस हजारों रुपए पहुंच चुका है। एसोसिएशन के महासचिव महेश शर्मा ने कहा कि रिटर्न दाखिल करने में सबसे बड़ी परेशानी व्यापारियों की पोर्टल को लेकर हैं, जिसमें बार-बार हैंग होना बड़ी वजह है। देशभर में एक साथ एक ही समय 1.50 लाख से अधिक लोग पोर्टल पर काम नहीं कर सकते, लेकिन रिटर्न दाखिल करते समय इसकी संख्या 3 लाख से भी अधिक होती है। ऐसे में समस्या जायज है। हमारी मांग है कि पुराने प्रकरणों में डीलर्स को राहत देनी चाहिए, ताकि वह फिर से व्यापार शुरू कर सके।
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