बंदूक से समस्या हल नहीं होगी नक्सल मामलों के विशेषज्ञ एवं बीएसएफ के सेवानिवृत डीजी प्रकाश सिंह ने सम्मेलन के दौरान कहा कि हिंसा को समाप्त किया जाना जरूरी है। नक्सलियों के आंदोलन को प्रतिहिंसा से खतम नहीं किया जा सकात है। वहीं हिंसा का रास्ता अख्तियार करने वाले और माओवादियों को यह समझ होनी चाहिए कि उनकी विचारधारा का कोई भविष्य नहीं है। उन्होने कहा कि स्थानीय लोग भी अब सुख और शांति चाहते हंै।
जेल में 33 माह रखा कांकेर जिले के घुमर गांव के दयालु राम नेगी ने बताया कि पुलिस ने उन्हें बेकार में 33 माह जेल में बंद रखा था। इसके बाद भी उनके मन में पुलिस के प्रति कोई दुर्भाव नहीं है। पुनई दुग्गा ने कहा उन्होंने सरेंडर करने के पहले 10 साल से अधिक नक्सली आंदोलन में बिताए थे। अब वह डर से अपने गांव नहीं जा पाती है। लेकिन वह चाहती हैं कि किसी भी तरह यह हिंसा खतम हो। उन्होंने कहा कि यदि हम माओवादी व पुलिस पीडि़त एक साथ पदयात्रा में चल सकते हैं और एक टेबल में बैठकर बात कर सकते हैं तो सरकार और माओवादी ऐसा क्यों नहीं कर सकते है। बता दें कि 12 मार्च से नक्सल प्रभावित अबूझमाड़ से करीब 100 लोग पदयात्रा करते हुए रायपुर है। इन सभी का कहना है कि हिंसा को समाप्त करने के लिए बातचीत शुरू की जानी चाहिए।
उग्र प्रदर्शन की चेतावनी नक्सल हिंसा में मारे गए और आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों के परिजनों ने मंगलवार को बूढ़ापारा में धरना दिया। साथ ही एसडीएम को ज्ञापन सौंपकर शासन द्वारा निर्धारित समर्पण नीति का लाभ दिए जाने की मांग की। महीनेभर में मांग पूरी नहीं होने पर उग्र प्रर्दशन करने की चेतावनी दी गई है।
जनमत संग्रह का अनुरोध पदयात्रा करते हुए रायपुर पहुंचे ग्रामीणों का क हना है कि वह जनमत सर्वेक्षण के बाद दोनों पक्षों पर यह दबाव डालना चाहते हैं। पिछले 40 वर्ष से चल रहे समस्या का समाधान बातचीत से निकालने का प्रयास करना चाहिए। सरकारी आंकड़ों के अनुसार पिछले 20 वर्ष में हिंसा के चलते 12000 से अधिक लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी है।