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रायपुर

छत्तीसगढ़ की इन आठ लोकसभा सीटों पर वन भूमि के पट्टे करेंगे हार-जीत का चुनाव

आदिवासी बहुल राज्यों में वनाधिकार कानून का क्रियान्वयन देश की 25 फीसदी सीटों पर यानी 133 सीटों पर अपना असर डालेगा

रायपुरMar 26, 2019 / 12:26 pm

Deepak Sahu

Lok Sabha Election

छत्तीसगढ़ की इन आठ लोकसभा सीटों पर वन भूमि के पट्टे करेंगे हार-जीत का चुनाव

आवेश तिवारी@रायपुर. आदिवासी बहुल राज्यों में वनाधिकार कानून का क्रियान्वयन देश की 25 फीसदी सीटों पर यानी 133 सीटों पर अपना असर डालेगा। इनमेंं छत्तीसगढ़ की आठ सीटें शामिल हैं। वनाधिकार कानून पर काम करने वाले संगठन सीएफआर-एलए (कम्युनिटी फारेस्ट रिसोर्स एडवोकेसी एंड लर्निंग) में कहा गया है कि जिन 133 लोकसभा सीटों के लिए हमने आंकड़े जुटाए हैं वहां 10 हजार हेक्टेयर से ज्यादा भूमि वनाधिकार कानून के दायरे में आती हैं और जिनमें रहने वाली 20 फीसदी से ज्यादा इस कानून के दायरे में आती है।
गौरतलब है कि पिछले लोकसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ की आदिवासी बाहुल्य सभी आठ सीटों पर भाजपा का कब्ज़ा था। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा 10 लाख से ज्यादा उन आदिवासियों को जंगल जमीन से बेदखली के आदेश दिए थे। जिनके वनाधिकार दावों को निरस्त कर दिया गया है । सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद जहां कांग्रेस ने भाजपा के खिलाफ जमकर हल्ला बोला था। वही आदिवासियों की बेदखली के खिलाफ छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश ने न्यायालय में पुनर्विचार याचिका लगाईं गई थी।
आदिवासी बहुल सीटों पर जबरदस्त दिखा असर : 2014 के चुनाव परिणामों को देखा जाए तो साफ़ पता चलता है कि छत्तीसगढ़ में 95 फीसदी सीटों पर जीत के मार्जिन से ज्यादा संख्या उन आदिवासियों की थी। जिन्होंने जंगल जमीन पर पट्टे का दावा किया था। छत्तीसगढ़ में ही नहीं देश भर में फैली आदिवासी बाहुल्य 133 सीटों में भी जीत हार के फैसले के पीछे यह चौंका देने वाला तथ्य छिपा हुआ है।
गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव के अपने घोषणापत्र में वनाधिकार कानून के क्रियान्वयन की बात कही थी इसका नतीजा यह हुआ कि पार्टी अनुसूचित जाति जनजाति के लिए आराक्षित 39 सीटों में से 68 फीसदी ज्यादा सीट जीत सकी। यहां यह बताना आवश्यक है ज्यादातर आदिवासी सीमांत कृषक है और उन्हें कर्ज माफ़ी एवं धान के समर्थन मूल्य में वृद्धि से ज्यादा फायदा वनोपजों के समर्थन मूल्य में वृद्धि और जंगल पट्टों पर हकदारी से मिलना है।

राजनीतिक पार्टियों का एक जैसा रवैया
वनाधिकार कानून पर राजनैतिक पार्टियों की गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि आम चुनाव की घोषणा के ठीक पहले कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल समेत अन्य मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर करने को कहा था और केंद्र सरकार की कोर्ट में खामोशी पर सवाल भी खड़े किये थे ।

राहुल गांधी के द्वारा पत्र लिखे जाने के तत्काल बाद भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने भी भाजपाशासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर कहा था कि वो पुनर्विचार याचिका दाखिल करे। जिसके बाद छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश की सरकारें हारकर में आई और न्यायालय ने फिलहाल आदिवासियों की बेदखली के आदेश को होल्ड पर रख दिया ।
कर्ज माफ़ी से ज्यादा जंगल पट्टों से आदिवासियों को लाभ : छत्तीसगढ़ में लगभग 34 फीसदी आदिवासी मतदाता हैं। यहां के परंपरागत रूप से आदिवासी कांग्रेस के साथ रहे हैं हालांकि छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद आदिवासियों के एक बड़े वर्ग का झुकाव बीजेपी की ओर हो गया नतीजतन, पिछले लोकसभा की 11 सीटों में से 10 सीटों पर बीजेपी का कब्जा हो गया। जानकारों का मानना है कि भूमि अधिकार कानून और वनाधिकार कानून स्थानीय मुद्दे हैं और चुनाव में इनको लेकर आदिवासी वोटों को मोबिलाइज भी किया जा सकता है।
गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ में वनाधिकार कानून के तहत दावों को निरस्त किये जाने की संख्या भी अन्य राज्यों की तुलना में ज्यादा रही है। कांग्रेस जहां कह रही है कि हम निरस्त हुए दावों की पुनर्समीक्षा करायेंगे वहीं भाजपा का कहना है कि हमने आदिवासियों को सर्वाधिक पट्टे दिए हैं और केंद्र में हमारी सरकार रही तो इसका और भी कारगर ढंग से क्रियान्वयन किया जाएगा।
छत्तीसगढ़ के नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने बताया कि आदिवासियों को जंगल जमीन से बेदखल न किये जाने को लेकर भाजपा कृत संकल्पित है। जो दावे निरस्त हुए हैं उनके परीक्षण कराये जाने में कोई बुराई नहीं है।
छत्तीसगढ़ सरकार मंत्री कवासी लखमा ने बताया कि जंगल पर पहला हक आदिवासियों का है। कांग्रेस अपने घोषणा पत्र के एक एक बिंदु का पालन करेगी।

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