अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित कांकेर लोकसभा सीट 1967 में अस्तित्व में आया। वर्ष 1967 में भारतीय जनसंघ से त्रिलोकशाह सांसद चुने गए थे। कांकेर सीट पर जनसंघ की यह पहली और आखिरी जीत साबित हुई। इसके बाद 1971 में भूतपूर्व पीएम इंदिरा गांधी के दौरे के बाद यह सीट कांग्रेस के खाते में चली गई और कांग्रेस के उम्मीदवार अरविंद नेताम यहां से सांसद चुने गए।
आपातकाल के बाद 1977 में हुए चुनाव में पूरे देश में चल रही कांग्रेस विरोधी लहर के बीच कांग्रेस को कांकेर सीट पर भी हार का मुंह देखना पड़ा। जनता पार्टी के अघन सिंह ठाकुर ने जीत हासिल की। लेकिन 1980 में दोबारा अरविंद नेताम सांसद चुनकर आए। 1980 में इंदिरा गांधी की सरकार में उन्हें केंद्रीय मंत्री का दर्जा दिया गया इसके बाद वो 3 बार और सांसद बने।
इसके बाद 1998 में कांकेर की इस लोकसभा सीट पर बीजेपी का कब्जा हुआ और सोहन पोटाई अगले 4 बार यानी 20 सालों के लिए सांसद रहे। फिर उनकी टिकट कटी तो पिछले लोकसभा में भी बीजेपी के विक्रम उसेंडी यहां से सांसद चुने गए।
पीएम मोदी और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को लगता है कि इस पारंपरिक सीट पर मोदी का जादू चल सकता है। इसलिए पीएम मोदी आज यहां सभा लेने आ रहे हैं।
एक नजर कांकेर विधानसभा सीटों पर
अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित कांकेर लोकसभा सीट में कांकेर के साथ भानुप्रतापपुर, अंतागढ़, केशकाल, सिहावा, संजारी बालोद, डौंडीलोहारा, गुंडरदेही विधानसभा सीट शामिल है। कांकेर की सभी विधानसभा सीट पर अभी कांग्रेस का कब्जा है। पिछली बार मोदी और अमित शाह विधानसभा में जितने भी जगह दौरे किए, वो सब सीट कांग्रेस के खाते में चली गई। एक वजह यह भी है कि वर्तमान कांग्रेस के गढ़ में अब भाजपा लोकसभा के जरिए सेंध लगाने की कोशिश कर रही है।