एेसा मंदिर जहां आज भी माचिस या लकड़ी से नहीं बल्कि पत्थर की चिंगारी से जलती है पहली ज्योति कलश
रायपुर. शक्ति उपासना का पर्व बुधवार को श्रद्धा, भक्ति और उत्साह के साथ प्रारंभ हुआ। माता रानी का दरबार मनोकामना ज्योति कलश से जगमग हुए तो दूसरी ओर दुर्गा उत्सव समितियां देर रात तक मां दुर्गा की प्रतिमाएं झांकियों और पूजा पंडालों में विधि-विधान से विराजमान किए।
देवी मंदिरों में सुबह मां भगवती का अभिषेक, श्रृंगार कर महाआरती की गई। पुरानी बस्ती स्थित प्राचीन मां महामाया मंदिर की प्रधान ज्योत वैदिक मंत्रोत्चार के बीच चकमक पत्थर के टूकड़ों को रगडऩे से उठी चिंगारी से प्रजव्वलित की गई।
इसके साथ ही मंदिर परिसर माता के जयकारे से गूंज उठा और एक-एक कर १० हजार से ज्यादा ज्योति कलश प्रज्जवलित किए गए। पुजारी पं मनोज शुक्ला ने बताया कि माहामाया मंदिर में प्राचीन परंपरा जीवंत है।
माचिस या लकड़ी की आग से नही बल्कि पत्थर की चिंगारी से सबसे पहले प्रधान ज्योत प्रज्जवलन के बाद सभी ज्योति कलश प्रज्जवलित किए जाते हैं। जहां पहले दिन माता के शैलपुत्री रूप का पूजन किया गया। व्रत रखकर भक्तों ने घरों से लेकर देवी मंदिरों ने घरों से लेकर देवी मंदिरों में पहुंचकर पूजा आरती में शामिल हुए।
गायत्री मंदिर में साधना ज्योति जली समता कॉलोनी स्थित गायत्री मंदिर में गायत्री परिवार ट्रस्ट के पहल पर आखिरकर चार वर्ष बाद नवरात्र के पर्व पर श्रद्धा, साधना ज्योति कलश की स्थापना कराई गई। ८७ ज्योति कलश स्थापित करने में भक्तों को काफी उत्साह दिखाया। गायत्री परिवार ट्रस्ट के प्रमुख प्रबंध ट्रस्टी श्याम बैस ने कहा कि गायत्री शक्तिपीठ में भक्तों को जनकल्याण के लिए मंत्र जाप, साधना साहित्य और लेखन आदि कराया जाएगा।
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