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रायपुर

हमारी सोच स्पोर्ट्समैन जैसी होनी चाहिए, हमेशा जीत नहीं हो सकती: मौलश्री

फोर्ब्स और फार्च्यून की लिस्ट में शुमार मौलश्री दुबे ने श्रीशिवम परिसर में तिरंगा फहराने के बाद कल्चरर इवेंट में सुनाए अपने अनुभव

रायपुरJan 28, 2022 / 03:01 pm

Tabir Hussain

हमारी सोच स्पोर्ट्समैन जैसी होनी चाहिए, हमेशा जीत नहीं हो सकती: मौलश्री

कार्यक्रम में अपनी बात रखती मौलश्री दुबे।

ताबीर हुसैन @ रायपुर. फाउंडेशन हम खड़ा करते हैं वैसे ही इंसान के जीवन में फाउंडेशन होता है। आज हम उन बच्चोंको कोविड स्टूडेंट कहने लगे हैं जिन्होंने अपने पिता या मां को कोराना के चलते खो दिया है। आज की तारीख में आप स्वस्थ हैं। आपके पैरेंट्स साथ हैं और आप बेहतर शिक्षा हासिल कर रहे हैं तो आपके जैसा सौभाग्यशाली कोई नहीं है । ये तीनों बुनियाद हैं। अगर थोड़ी-बहुत दिक्कत आती है तो रेनिवेशन हो ही जाएगा। आप जिस चीज में बेहतर हैं जो पार्ट स्ट्रांग है आप उसी में फोकस्ड रहिए क्योंकि पांचों उंगलियों को खींचेंगे तो फैल हो जाएंगे। यह कहा फोर्ब्स और फार्च्यून की लिस्ट में शुमार मौलश्री दुबे ने। वे पंडरी स्थित श्रीशिवम में आयोजित रिपब्लिक डे इवेंट में बतौर चीफ गेस्ट बोल रही थीं। इससे पहले उन्होंने ध्वज फहराया। बोलीं- ऐसा नहीं है कि किसी ने आईआईटी से पढ़ाई कर ली तो वह बहुत खुश है। हर व्यक्ति अपने लेवल पर सँघर्ष कर रहा होता है इसलिए सबसे संवेदना के साथ पेश आएं। हमारी सोच स्पोट्र्स मैन जैसी होनी चाहिए। हमेशा जीत नहीं हो सकती। यह जिंदगी का एक हिस्सा है।

जरूरी नहीं कि खुद गड्ढे में गिर कर देखें कि वहां गड्ढा था

प्रैक्टिल नॉलेज से जो सीख मिलती है वह आजीवन आपके साथ रहती है। जरूरी नहीं कि अपने ही प्रैक्टिल नॉलेज से सीख मिले। अगर कोई कहे कि आगे 50 मीटर की दूरी पर गड्ढा है तो उसकी भी बात मान लेनी चाहिए जरूरी नहीं कि खुद गड्ढे में गिर कर देखें कि वहां गड्ढा था। कोविड के दौरान आर्थिक परेशानियां हुईं। खासतौर पर गांवों में। केंद्रीय पर्यटन विभाग ने एक कम्युनिटी बेस्ड टूरिज़्म कैंपेन शुरू किया। पिछले साल एमपी और गुजरात के ऐसे गांवों में गई थी जहां पर सिग्नल भी नहीं था। बेसिक सुविधाएं नहीं थीं। न शौचालय था न स्नान घर। वहां के लोग 4 किमी चलकर पानी लाया करते हैं। ऐसे में घर के लोगों की चिंता जायज थी। लेकिन मेरा मानना है कि जर्नी और डेस्टिनेशन से ज्यादा जरूरी है आपकी कंपनी क्या है। मेरे साथ 5 और लड़कियां थी जो आर्टिटेक्ट थीं। जो अलग-अलग प्रदेशों से आईं थीं। उनका साहस और उत्साह देखते हुए मैंने यह टास्क लिया।

छत पर बैठे-बैठे लिखी कविता

वहां के लोगों को फिक्र थी कि टूरिज़्म के चलते हमारे गांव का शहरीकरण तो नहीं हो जाएगा। जबकि हमारी सोच थी कि वहां की इकॉनमी बढ़े। वहां एक छोटी सी छत थी। मैं अक्सर वहां बैठ जाया करती थी। मैंने वहां एक कविता लिखी-
साइकिल की घंटी से नींद खुली
हवा में अदरक की महक घुली जा रही थी
शायद शोभा चौके में चाय बना रही थी
आंगन में आजी सब्जी काट रही थी
मैं अपनी चाय का कुल्हड़ लेकर
रोज सुबह छत पर यूंही बैठ जाती
यहां घरों में सीढिय़ां ऐसी ही खड़ी-खड़ी रहती हैं
छत ज्यादा बड़ी नहीं थी
पर मुझे तो वहां से पुरा आसमान दिख जाता
कहने का मतलब यह कि आपका नजरिया यह तय करता है कि कोई चीज छोटी है या बड़ी है। मुझे वह सुकून और इत्मीनान अपने घर के कमरे में नहीं मिलता था जो वहां मिला करता था।

हर किसी के लाइफ का ग्राफ अलग होता है

जैसे हर इंसान के थम्ब प्रिंट अलग होते हैं। हर किसी के लाइफ का ग्राफ अलग होता है। यहां तक की एक घर में सगे भाइयों का ग्राफ अलग होता है। न स्वभाव और न भाग्य एक जैसा होता है। घरों में किसी मेंबर की किसी से तुलना होती है तो उससे निराश नहीं होना चाहिए। आपका समय कुछ और होगा। समय आप मत तय कीजिए वो ईश्वर पर छोड़ दीजिए। आप मेहनत और ईमानदारी से वही कीजिए जिसमें मजबूत हैं।

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