बच्चों को इसलिए बुलाए ताकि वे बाहर चर्चा करें
राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने कहा कि इस कार्यक्रम में पहली बार स्कूली बच्चों को बुलाया गया। इसके पीछे मकसद ये था कि वे ऐसे समारोह की अपने घर, मोहल्लों व दोस्तों के बीच चर्चा करें। यह बहुत जरूरी भी है। उन्हें भी तो पता चले कि साफा पहने लोगों को मेडल क्यों दिया जा रहा है, वे देखेंगे तो उनमें भी इस दिशा में आगे बढऩे की प्रेरणा मिलेगी। कहा कि सबको जॉब मिलना मुश्किल है, बेहतर हो युवा स्वरोजगार के बारे में सोचें। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि विश्वविद्यालय से उत्तीर्ण होने के बाद युवाओं के समक्ष सबसे पहले चुनौती रोजगार की होती है। हमारी कोशिश रहेगी कि युवाओं को रोजगार मिले। इसके लिए प्रयास किए जा रहे हैं। रोजगार को बढ़ावा देने के लिए अटल नगर में सॉफ्टवेयर पार्क बनाएंगे। मुख्य अतिथि गोपाल कृष्ण गांधी ने कहा कि देश के सामने सबसे ज्वलंत समस्या बेरोजगारी है। इसे दूर करने के लिए समुचित कदम उठाने और स्वरोजगार के अवसर पैदा करने की जरूरत है। मंत्री उमेश पटेल ने कहा कि उच्च सपने देखें और अपना लक्ष्य निर्धारित करें।
पोते की खुशी में शामिल हुए दादा
भिलाई-3 निवासी तरुण साहू को एमएससी बॉयो केमेस्ट्री में गोल्ड मेडल मिला है। मेडल मिलने का साक्षी बनने दादा हृदयराम साहू भी आए थे। ह्दयराम ने कहा कि मेरे लिए आज का दिन बहुत बड़ा है। मेरे पोते ने गोल्ड मेडल लाकर कभी न भूलने वाली खुशी दी है।
मेरी बहू तो लाखों में एक
राजनांदगांव की मनीषा सोनी टीचर हैं। उन्हें पीएचडी की डिग्री मिली। उनकी खुशियों में शामिल होने सास आशा सोनी भी आईं। आशा ने बताया कि मेरी बहू ने गृहस्थी, टीचरशिप और खुद की स्टडी के बीच बहुत बढि़या तालमेल बिठाया। घर के किसी काम को लेकर कोई शिकायत का मौका नहीं दिया। सच कहूं तो मेरी बहू लाखों में एक है।
मौसी को पीएचडी, भांजी को गोल्ड
कान्वोकेशन में मौसी और भांजी की जोड़ी भी नजर आई। मौसी दीपशिखा राय ने बॉटनी में पीएचडी की है और शादी के बाद दिल्ली में रह रही हैं। कबीरनगर निवासी भांजी प्रकाम्या ने बीएएलएलबी में ३ गोल्ड हासिल किया है। दीपशिखा रायपुर निवासी डॉ. सुधा शर्मा की बहन हैं और प्रकाम्या की मॉम।
रिटायरमेंट की उम्र में की पीएचडी
भिलाई के रामकुमार यादव कमोरा हाईस्कूल में प्रिंसिपल हैं। उम्र 62 है, लेकिन कहते हैं पढ़ाई को किसी एज फ्रेम में केप्चर नहीं किया जा सकता। 25 साल पहले एमएड किया तभी से प्रण था कि पीएचडी करनी है। एजुकेशन में पीएचडी की। वे एमएससी मैथ्स, एमएम पॉलिटिकल साइंस और हिंदी भी हैं। पत्नी साइंस कॉलेज दुर्ग में प्रोफेसर है। वे पति की इस उपलब्धि को लेकर काफी खुश हैं।
पढ़ाई के समय बेटा हुआ, डिग्री लेने बिटिया संग आई
डंगनिया निवासी निशा ने जब पीएचडी की पढ़ाई शुरू की तब उनका बेबी हुआ था राघव। आज जब वे डिग्री लेने पहुंची तो गोद में नन्ही शिवन्या भी थी। निशा के पति आलोक शर्मा कॉन्ट्रेक्टर हैं। निशा कहती हैं कि डिग्री मिलने की खुशी में मेरी बेटी भी शामिल हुई। मुझे पूरी उम्मीद है ये भी आगे चलकर गोल्ड मेडलिस्ट साबित होगी। निशा धमतरी में पढ़ाती हैं।
पिता का प्रोविजन स्टोर, बेटी ने बटोरे 6 गोल्ड
प्रतिभाएं सिर्फ शहरों में ही नहीं, बल्कि कस्बों से भी निकलती हैं, इसे साबित किया है बागबाहरा की नीतिशा बजाज ने। उन्हें बीएससी मैथ्स में 6 गोल्ड मेडल मिले हैं। नीतिशा ने बताया कि फस्र्ट ईयर से ही टीचर्स कहने लगे थे कि अच्छे से पढ़ोगी तो गोल्ड के चांसेस हैं। फैमिली सपोर्ट तो रहा ही, मैंने भी मेहनत की। हालांकि ये उम्मीद नहीं थी कि 6 गोल्ड मिल जाएंगे। नीतिशा के पापा लक्ष्मण बजाज प्रोविजन स्टोर चलाते हैं, मॉम वर्षा बजाज हाउसवाइफ हैं।
एक्सीडेंट से हुए चोटिल, विलपॉवर से रिकवर हुए और झटके ६ गोल्ड
कबीर नगर के रहने वाले अक्षय नामदेव प्रगति कॉलेज के छात्र हैं। उन्हें बीएससी कम्प्यूटर साइंस में ६ गोल्ड मिले हैं। बीएससी सेकंड ईयर में वे हादसे के शिकार हुए। महीनों बेड रेस्ट किया, लेकिन विलपॉवर इतना स्ट्रांग था कि न सिर्फ सेहत को रिकवर किया बल्कि पिछड़ती पढ़ाई में सामंजस्य बिठाते हुए आगे बढ़े। उन्होंने गोल्ड का श्रेय पैरेंट्स, टीचर, नाना-नानी, बड़ों के आशीर्वाद को दिया है। वे आइएस की तैयारी कर रहे हैं। पापा सतीश नामदेव मंत्रालय में कार्यरत हैं और मॉम हाउसवाइफ।
मॉम ने पाया था कॉलेज में गोल्ड, बेटी ने यूनिवर्सिटी में रही टॉपर
राजनांदगांव की शिवांगी झा को एमएससी केमेस्ट्री में 5 गोल्ड मिले हैं। उनकी मॉम स्वयंसिद्धा भी इसी यूनिवर्सिटी से 1987 की एमकॉम में दिग्विजय कॉलेज की गोल्ड मेडलिस्ट रही हैं। उन्हें यूनिवर्सिटी में सातवीं रैंक मिली थी। स्वयंसिद्धा कहती हैं कि मुझे अपनी बेटी पर नाज है। हमारे टाइम में उतना कॉम्पीटिशन नहीं था, आज का जमाना तो प्रतियोगिता है, इसने गोल्ड हासिल कर कमाल किया है। शिवांगी ने कहा कि मम्मी से प्रेरित होकर मैंने गोल्ड का सोचा और सफल हुई। पापा सरकारी स्कूल में टीचर हैं, मॉम कॉलेज में गेस्ट लेक्चरर। मेरी इस कामयाबी का श्रेय पैरेंट्स और गुरुजनों को जाता है।
इन्होंने भी छू लिया आसमान
अंबिकापुर की शालीनता तिग्गा कहती हैं मैं स्कूली जीवन से ही टाइम मैनेजमेंट करती रही हूं। इसका फायदा मुझे केमेस्ट्री में पीएचडी करने में मिला।
सपना जो पूरा हुआ : सिटी की योगिता कहती हैं कि जिंदगी का एक ही सपना था कि मैं शोधार्थी बनूं। ये इतना आसान भी नहीं था। तमाम उतार-चढ़ाव के बाद मेरे सपने को पंख लगे और आज मैंने डिग्री ली।
अच्छा फील होता है : सिटी की आकांक्षा कहती हैं कि जो चीज आप अचीव करना चाहो और वो मिल जाए तो जाहिर है अच्छा महसूस होता है। पीएचडी की डिग्री पाकर मैं बेहद खुश हूं। इसका श्रेय परिवार और गुरुओं को दूंगी।
अवंतिका को मिले 6 गोल्ड तों निहारती रह गई मॉम
कार्यक्रम में कई भावुक नजारे भी देखने को मिले। गणेश चौक धमतरी निवासी अवंतिका गुप्ता की मॉम गोल्ड को निहारते हुए भावुक हो गईं। कहने लगी मेरी बेटी ने आज जो मुकाम हासिल किया है व न सिर्फ उसकी जिंदगी बल्कि मेरी लाइफ के लिए भी बहुत खास है। अवंतिका को एमएससी मैथ्स में 6 गोल्ड मिले। अवंतिका कहती हैं कि जहां चाह वहां राह। आज अगर कुछ करने की ठान लो तो ऐसी सिचुएशन बनने लगती है कि आप उस दिशा में लगातार आगे बढ़ें। ऐसा ही मेरे साथ हुआ। मैंने बीएससी में कोशिश की थी लेकिन पांचवीं रैंक मिली और कॉलेज में सिल्वर मेडल मिला। तबसे मैंने सोच लिया था कि एमएससी में यह मौका नहीं छोड़ूंगी। पैरेंट्स और टीचर के सपोर्ट से मैंने यह अचीवमेंट हासिल की है। पापा राजेंद्र गुप्ता बिजनेस मैन हैं और मॉम रंजना गुप्ता हाउस वाइफ।
सिटी की प्रियंका को मिले 7 गोल्ड, खिला चेहरा
डब्ल्यूआरएस की रहवासी प्रियंका पांडे को एमएससी फिजिक्स में 7 गोल्ड मेडल मिले। हालांकि यह उपलब्धि इतनी आसान नहीं थी। अगर हम नौ साल पीछे जाएं तो उनकी संघर्ष की दास्तां समझ सकते हैं। क्लास नाइंथ में थीं तो हाथों में एक लेटर था जिसमें उनके पिता को नौकरी से निकालने का जिक्र था। प्रियंका के पैरों तले जमीन खिसक गई, क्योंकि परिवार में उनके अलावा दो भाई और मम्मी आश्रित थीं। मॉम ने सेविंग की रकम से घर को संभाला। प्रियंका को महसूस हुआ कि जमा पैसे ज्यादा दिन नहीं चलने वाले। उन्होंने ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया। हालांकि इसकी शुरुआत प्रियंका ने एक कोचिंग सेंटर से ही की लेकिन कुछ बच्चों को पढ़ाने उनके घर भी जाती थीं। 2010 से शुरू हुआ संघर्ष सुनहरे पन्नों में बदल गया।डीबी गल्र्स कॉलेज में गेस्ट लेक्चरर: प्रियंका कहती हैं कि मैं उन बच्चों में शामिल नहीं हूं जो हमेशा टॉप करने की सोचते हैं। दिनरात पढ़ाई में जुटे रहते हैं। मैंने हमेशा प्रजेंट को हंड्रेड परसेंट दिया। मैंने कम वक्त में ही दुनियादारी देख ली थी। स्ट्रगल इतने रहे कि कब मेरी पढ़ाई पूरी हो गई और आज डीबी गल्र्स कॉलेज में गेस्ट लेक्चरर बन गई पता ही नहीं चला।
संघर्ष से मिलती है हिम्मत: प्रियंका कहती हैं कि लाइफ में जो भी स्ट्रगल आते हैं वे आपकी काबिलियत को निखार देते हैं। जब से होश संभाला है, तबसे यही सोचती थी कि पढ़ाई करनी है लेकिन यह नहीं सोचती थी कि इसका प्लस प्वाइंट क्या मिलेगा। मैंने कभी एक्सेप्ट नहीं किया था कि मेरी जिंदगी में वह सारी चीजें आएंगी। हर स्ट्रगल मेरी जिंदगी में एक नई हिम्मत एड करता गया।
पापा थे आरपीएफ में हैड कांस्टेबल: प्रियंका ने बताया कि पापा आरपीएफ में हैड कांस्टेबल थे। उनकी एक कमजोरी थी कि ड्रिंकर थे उन्हें नौकरी से हटा दिया गया। तब से हम केस लड़ रहे हैं। हमें सिर्फ तारीख मिलती है सुनवाई नहीं होती। हमारा कहना ये है कि पापा नौकरी नहीं कर सकते तो उनके दो बेटों में से किसी एक को नौकरी दे दी जाए। आज तो हमने खुद को स्टेबल कर लिया लेकिन उस वक्त किसी ने नहीं सोचा कि इनका गुजारा कैसे होगा। मम्मी ने हिम्मत नहीं हारी। सेविंग के कुछ पैसे पापा के इलाज में खर्च हो गए क्योंकि उनका लिवर 25 परसेंट डेमेज हो गया। उस वक्त नौकरी से निकाल दिया गया था, केस के बाद उसमें मोडिफाई किया और कंपलसरी रिटायरमेंट करार दिया गया। हम आज भी केस लड़ रहे हैं।
केटीयू में भी 9 में से 8 गोल्ड पर लड़कियों का कब्जा
कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय का चौथ दीक्षांत समारोह सोमवार को 3 बजे पं. दीनदयाल उपाध्याय आडिटोरियम में आयोजित किया गया। समारोह की अध्यक्षता राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने की। मुख्य अतिथि ओम थानवी रहे। विशिष्ट अतिथि मंत्री उमेश पटेल थे। शपथ कुलपति डॉ. मान सिंह परमार ने दिलाई। इस बार भी दीक्षांत समारोह परंपरागत भारतीय वेशभूषा में हुआ। दीक्षांत समारोह में चार शोधार्थियों को पीएचडी की उपाधि प्रदान की गई। इसमें नृपेन्द्र कुमार शर्मा, संजय कुमार, राकेश कुमार पाण्डेय और राजेश कुमार शामिल हैं।
इन विद्यार्थियों को मिला सोना : सत्र 2018 की प्रावीण्य सूची में विभिन्न पाठ्यक्रमों में प्रथम स्थान प्राप्त करने वाली गीतिका ब्रह्मभट्ट एमएएमसी, निशा ठाकुर एमएसडब्ल्यू, निधि भारद्वाज बीए जेएमसी, खुशबू सोनी एमएससी इएम, मोनिका दुबे बी.एस-सीइएम, रजत वाधवानी एमजे, शुभांगी खंडेलवाल एमएएपीआर, सुरभि अग्रवाल एमबीएएचआरडी और ज्योति वर्मा एमबीए एचए।