जीइसी रायपुर से पासआउट
विक्रम के पिता सिपाही थे जो हवलदार बनकर 2005 में रिटायर हो गए। उन्होंने जीइसी (अब एनआइटी) से पासआउट होने के बाद आइटीआइ खडग़पुर से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की। टाटा मोटर और जीई में जॉब किया। जॉब के सिलसिले में चाइना गए। वहां से जर्मनी पहुंचे। यहां लंबे समय तक जॉब किया।
कैसे आया आइडिया
वि क्रम जर्मनी में रह रहे थे। वहां सबसे ज्यादा समस्या नि:संतान होना है। बच्चे के लिए लोग हर कीमत देने को तैयार हैं। उन्हें मालूम था कि भारत में भी इस तरह की दिक्कतों से दंपती दो-चार होते हैं और बच्चे की चाहत के लिए पूरी पूंजी लगा देते हैं। विक्रम ने इस पर रिसर्च किया और साइंटिस्ट, डॉक्टर्स समेत एक्सपर्ट की टीम बनाई।मेडिकल डिवाइस की एक होम किट तैयार की है जिसे नि:संतान दंपती उपयोग कर सकते हैं। इसके अलावा बुजुर्गों के लिए एक एेसा चम्मच बनाए जाने की प्लानिंग है जिसमें बुजुर्ग के हाथ भले हिलते रहें लेकिन चम्मच सीधा रहेगा। इससे उन्हें खाने-पीने में दिक्कत नहीं होगी। साथ ही ऑटोमेटिक व्हीलचेयर बनाने की योजना है जिसकी मदद से बुजुर्ग सीढि़यां आसानी से चढ़ सकेंगे। बिस्तर में लंबे समय तक रहने वाले मरीजों की पीठ में फफोले हो जाते हैं, उसको हटाने वाला डिवाइस भी बनाएंगे।
क्या है होम किट
विक्रम ने बताया कि आइयूआइ किट स्पर्म वॉश करता है। इसके बाद फीमेल के यूटरेस में डाल देता है। बिना किसी डॉक्टर की मदद से स्पर्म का एनालिसिस भी किया जा सकता है।
टीम में ये भी हैं शामिल
निलेश जैन मुंबई, प्रो. हिमांशु राय आइआइएम लखनऊ, लक्ष्य सत्यार्थी लखनऊ, गौरव मदन दिल्ली, डॉ. रजनी दिल्ली, डॉ. प्रतिभा परेरा बैंगलूरु, डॉ. भूपेंद्र राणा दिल्ली, डॉ. शिल्पी मित्तल दिल्ली, राजेंद्र रेड्डी बैंगलूरु, कुणान कुमार आइआइटी खडग़पुर, जी क्वांग जिओंग जर्मनी, चंदन कुमार बैंगलूरु, डॉ. प्रताप मैसूर।
यूएस में रह रहीं रायपुर की शाम्भवी शुक्ला
इ स स्टार्टअप में राजधानी की शाम्भवी शुक्ला भी शामिल हैं। बैरनबाजार स्थित होलीक्रास स्कूल और जीइसी (अब एनआइटी) से पासआउट शाम्भवी शुक्ला ने डिपार्टमेंट ऑफ साइंस टेक्नालॉजी रिसर्च लैब हैदराबाद में रिसर्च फेलो किया। यहां सालभर तक लेजर तकनीक में काम किया। इसके बाद मेडिकल डिवाइज की एक कंपनी में पांच साल तक वैज्ञानिक रहीं। उस समय यहां कलाम-राजू स्टेंट बनाए जाते थे। कंपनी की ओर से उन्हें जर्मनी, फ्रांस, यूएस, लंदन और थाइलैंड जाने का भी मौका मिला। इस बीच शाम्भवी की शादी हो गई और वे यूएस शिफ्ट हो गईं। वहां भी उस कंपनी की ब्रांच में काम करने लगीं लेकिन बेबी होने की वजह से उन्हें जॉब से ब्रेक लेना पड़ा। बैंगलूरु में स्टार्टअप को लेकर मीटिंग होने जा रही है। इसमें शामिल होने शाम्भवी रायपुर आईं हैं। इस दौरान उन्होंने इस स्टार्टअप पर चर्चा की।
देश सेवा के लिए नहीं रोक सकती सरहदें
शाम्भवी कहती हैं कि वे दो बच्चों की मां है। नि:संतान दंपतियों की समस्याओं को करीब से देखा है। चूंकि मैं इस स्टार्टअप के माध्यम से फिर से कम बैक कर रही हूं। मेरे बनाए होम किट से लोगों की जिंदगी में खुशियां लेकर आएंगे इससे बड़ी बात और क्या हो सकती है। आज भले ही यूएस में रहती हूं लेकिन हूं तो भारतीय। देश सेवा के लिए कोई भी सरहदें रुकावट नहीं बन सकतीं।