सत्र नया, समस्याएं पुरानी
सरकारी स्कूलों की उपेक्षा गरीब व मध्यम वर्ग के बच्चों के साथ अन्याय है
सत्र नया, समस्याएं पुरानी
सरकारी स्कूलों में नया शिक्षण सत्र प्रारंभ हो गया। सैकड़ों स्कूलों में शिक्षकों व सहूलियतों की कमी सोचने पर मजबूर करती है कि क्या इन स्कूलों में छात्र-छात्राओं को उचित शिक्षा मिलेगी! उनका भविष्य उज्ज्वल बन सकेगा! ये बच्चे अपने माता-पिता, समाज व प्रदेश का नाम रोशन कर सकेंगे! सरकार कितन ही कहे कि शिक्षा व्यवस्था में व्यापक सुधार कर रही है, लेकिन सरकारी स्कूलों में अव्यवस्था व शिक्षकों की कमी के चलते अध्यापन कार्य प्रभावित होने, बरसात में कई स्कूलों का रास्ता बंद होने, कमरों में पानी टपकने से छुट्टी होनेे, छात्र-छात्राओं द्वारा कक्षा बहिष्कार करने, अभिभावकों द्वारा स्कूल में तालाबंदी करने की खबरें सालभर सुर्खियां बनी रहती हैं। हकीकत यह है कि प्रदेश के सैकड़ों स्कूलों में एक-एक शिक्षक हैं और कई स्कूल शिक्षकविहीन, भवनविहीन, बिजलीविहीन व शौचालयविहीन हैं।
सरकारी स्कूलों की उपेक्षा गरीब व मध्यम वर्ग के बच्चों के साथ अन्याय है। क्योंकि, वे प्रतिभा में किसी से भी कम नहीं है। कई हस्तियों ने सरकारी स्कूलों में ही पढ़ाई कर अपना मुकाम पाया है। आज भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित सरकारी स्कूलों से पढ़ाई करने वाले लोग राजनीति, नौकरशाही से लेकर कई क्षेत्रों में अपना परचम लहरा रहे हैं। ऐसेे में सरकारी स्कूलों की दुर्दशा पर गंभीरता से चिंतन करने की जरूरत है। लगता है सरकार के नुमाइंदों, नौकरशाहों, जनप्रतिनिधियों, राजनीतिक दलों के कर्णधारों, समाज के कर्ताधर्ताओं, धनिक व बुद्धिजीवी वर्ग के बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ाना अनिवार्य करना होगा, तभी इनमें बुनियादी सुविधाएं और गुणवत्तायुक्त अध्ययन-अध्यापन मुहैया हो पाएंगे!
बहरहाल, सरकार को शीघ्र ही सभी शिक्षण संस्थानों में शिक्षकों और सहूलियतों की कमी को दूर करना होगा। अव्यवस्था के आलम में शिक्षण प्रारंभ कराना, हर हाल में अनुचित माना जाना चाहिए। क्योंकि, इसका खमियाजा आखिरकार छात्र-छात्राओं को ही भुगतना पड़ता है। सरकार को समझना चाहिए कि छात्र-छात्राओं के भविष्य से खिलवाड़ परिवार, समाज, प्रदेश और देश के हित में नहीं है।
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