बिलासपुर सिटी कब बनेगी स्मार्ट?
शहर की आबोहवा को बिना सोचे-समझे ऐसी कार्य-योजनाएं तैयार कर रहे हैं
बिलासपुर सिटी कब बनेगी स्मार्ट?
आखिर बिलासपुर स्मार्ट सिटी कब बनेगी। लगता है इस प्रोजेक्ट से जुड़े अफसर ‘स्मार्ट सिटीÓ का अर्थ ही नहीं समझ पाए हैं, तभी तो शहर को स्मार्ट बनाने के नाम पर न्यायधानी बिलासपुर की खूबसूरती को तार-तार करने पर तुले हैं। हरे-भरे छायादार पेड़ों से सुसज्जित बिलासपुर की सड़कों को पहले ही उजाड़ा जा चुका है। आकर्षक स्वागत द्वारों व चौक-चौराहों की खूबसूरती को नष्ट किया जा चुका है। अब शहर की पहचान अरपा को भी कूड़ा-करकट से पाटने पर तुले हैं। जिस खूबसूरती के लिए बिलासपुर शहर जाना-जाता है उसके मूल स्वरूप से छेड़छाड़ करना समझ से परे है।
स्मार्ट सिटी का अभिप्राय ऐसे शहर से होना चाहिए जहां लोगों को सुविधापूर्ण जीवन मिले। वहां बिजली, पानी, सड़क, पार्किंग, साफ-सफाई, चिकित्सा, शिक्षा जैसी सुविधाएं सहज ही सुलभ हों। आम आदमी का जीवन सुरक्षित हो। हर समस्या का समयबद्ध समाधान हो। लोगों को किसी प्रकार की परेशानी न झेलनी पड़े। सुविधाओं के लिए सरकारी दफ्तरों, अधिकारियों, नेताओं के चक्कर न काटने पड़ें। भ्रष्टाचार का नामोनिशान न हो। कार्यों-प्रक्रियाओं में पारदर्शिता हो। लेकिन स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट से जुड़े अफसरों को लगता है, इन सब बातों से कोई सरोकार नहीं है। शहर की आबोहवा को बिना सोचे-समझे ऐसी कार्य-योजनाएं तैयार कर रहे हैं, जिससे जनता की परेशानी शायद ही दूर हो। शहर की कोई भी सड़क ऐसी नहीं है जो सुरक्षित हो। धूल-धुसरित न हो। बिजली के तार कहीं नीचे तक लटक रहे हैं तो कहीं उनका मकडज़ाल लगा हुआ है। पानी ही हालत यह है कि एक तो गंदी नालियों से पाइप लाइन गुजरीं हैं, दूसरी ओर कई जगहों पर टूटी-फूटी हुई हैं, जहां से फव्वारे निकलते रहते हैं।
अफसरों को चाहिए कि पहले ठोस योजना बनाएं। जनता और अनुभवी लोगों की राय लें। स्मार्ट सिटी का काम स्मार्ट तरीके से ही होना चाहिए। सरकार को भी चाहिए कि जिम्मेदारियां बांटकर इतिश्री न करे बल्कि पूरी निगरानी रखे। अन्यथा सरकारी खजाने से भारी राशि खर्च होने के बावजूद जनता के हिस्से कुछ नहीं आएगा। सुविधाओं के लिए जनता तरसती ही रह जाएगी।
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