अनुवाद का एक पैसा नहीं लिया
बख्शी ने बताया, साहित्यकार स्व. हरिहर वैष्णव के जरिए मेरा संपर्क राम दंपती से हुआ था। उन्हें उपन्यास इतना पसंद आया कि वे बिना किसी पारश्रमिक के भूलन कांदा का अंग्रेजी अनुवाद करने को तैयार हो गए। उमा राम इसे कन्नड़ में भी ट्रांसलेट करेंगी।तीन संस्करण आ चुके हैं
लेखक की मानें तो भूलन कांदा के तीन संस्करण आ चुके हैं और चौथे की तैयारी चल रही है। वे कहते हैं, मुझे इस बात की खुशी है कि लोग इसे पसंद कर रहे हैं। इस नॉवेल ने न सिर्फ फिल्म को अवॉर्ड तक पहुंचाया बल्कि मेरा भी सम्मान बढ़ा दिया है।चार साल में पूरा हुआ था लेखन
मालूम हो कि भूलन कांदा को बख्शी ने चार साल में पूरा किया था। इसका विमोचन 2012 में हुआ लेकिन यह बया नाम पत्रिका में प्रकाशित हो चुका था। बख्शी ने बताया, वरिष्ठ साहित्यकार स्व. विष्णु खरे के शब्द आज भी मेरे कानों में गूंजते हैं। जब उन्होंने नॉवेल पढ़ा तो फोन पर आधे घंटे बात हुई थी। उन्होंने कहा था कि जितनी सार्वजनिकता आपके उपन्यास में है उतनी तो प्रेमचंद में मैंने नहीं देखी। बख्शी ने कहा कि इसे हिंदी के छात्रों को भी पढ़ाया जाना चाहिए।