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रायपुर

पुलवामा नहीं, छत्तीसगढ़ में हुआ CRPF पर अब तक का सबसे बड़ा हमला, 76 जवान हुए थे शहीद

जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में सीआरपीएफ के जवानों पर हुआ हमला अकेला हमला नहीं है जिसमें परिस्थितियों को समझने में चूक हुई, और इंटेलिजेंस फेल हुआ।

रायपुरFeb 16, 2019 / 01:55 pm

Ashish Gupta

tedmetla naxal attack

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आवेश तिवारी/रायपुर. जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में सीआरपीएफ के जवानों पर हुआ हमला अकेला हमला नहीं है जिसमें परिस्थितियों को समझने में चूक हुई, और इंटेलिजेंस फेल हुआ। 6 अप्रैल 2010 को दंतेवाड़ा के ताड़मेटला में 76 जवानों की शहादत के पीछे भी यही हुआ था। लेकिन अफ़सोस कि माओवादियों द्वारा किये गए उस हमले के बाद की गई कोर्ट आफ इन्क्वायरी में आइपीएस अधिकारियों को लापरवाही बरतने का दोषी पाया गया तो इन्क्वायरी के नतीजों पर कार्रवाई न करते हुए दूसरी कोर्ट आफ इन्क्वायरी सेटअप कर दी गई, जिसमें आरोपी बच निकले।

कोर्ट आफ इन्क्वायरी करने वाले सीआरपीएफ के पूर्व डीजी डीसी डे ने पत्रिका से कहा है कि अगर परिस्थितियों का सही ढंग से मूल्यांकन किया जाता तो ताड़मेटला की घटना न घटती। सीआरपीएफ द्वारा की गई कोर्ट आफ इन्क्वायरी में इस हमले में चार अफसरों को लापरवाही बरतने का दोषी पाया गया था। गौरतलब है कि इस हमले के बाद बीएसएफ के पूर्व डीजी राममोहन की अध्यक्षता में एक कमीशन भी बनाया गया था, जिसमें भी लापरवाही की बातें सामने आई थीं।
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जिन अफसरों ने बरती लापरवाही उन्हें मिली बेहतर पोस्टिंग
ताड़मेटला काण्ड में कमीशन की जांच रिपोर्ट में कहा गया कि यह आश्चयर्जनक है कि सीआरपीएफ का वायरलेस सेट माओवादियों के पास पहुंच गया और उन्होंने उसकी मदद से इस हत्याकांड को अंजाम दे दिया। देश में सीआरपीएफ के जवानों की सबसे बड़ी शहादत का नतीजा यह रहा कि गृह मंत्रालय द्वारा बनाई गई राममोहन कमेटी और सीआरपीएफ की अपनी कोर्ट आफ इन्क्वायरी के नतीजों में साबित होने के बावजूद दोषी पाए गए अफसरों पर अब तक कोई बड़ी कार्रवाई नहीं हो सकी।

हाँ यह जरुर हुआ कि इस घटना के बाद अफसरों का स्थानान्तरण छत्तीसगढ़ से ज्यादा सुरक्षित इलाकों में कर दिया गया। गौरतलब है कि पूरे देश को दहला देने वाले इस मामले में तत्कालीन आईजी रमेश चंद्रा, डीआइजी नलिन प्रभात 62 बटालियन के कमांडेंट एके बिष्ट और इंस्पेक्टर संजीव बांगडे पर लापरवाही के आरोप लगे थे।

कदम-कदम पर गलती, कदम-कदम पर साजिश
पुलवामा में सीआरपीएफ के कानवाय पर हमले के बाद ट्विटर पर सीआरपीएफ से सेवानिवृत हो चुके पूर्व आइजी रमेश चंद्रा ने ट्वीट किया कि हमें भी वृद्ध पेंशन स्कीम में शामिल किया जाना चाहिए यही जवानों के लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी। लेकिन रमेश चंद्रा वो अधिकारी थे जिन्होंने 1 अप्रैल 2010 को एक ऐसे आपरेशन को करने की इजाजत दे दी, जिसका कोई भी तर्क न था।

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उस आपरेशन में शामिल एक अधिकारी बताते हैं कि तत्कालीन डीआइजी नलिन प्रभात ने आइजी रमेश चन्द्र से इजाजत लेकर जवानों को 72 घंटे के लिए एरिया सेनीटाईज करने के आपरेशन पर निकाल दिया। राममोहन कमेटी की रिपोर्ट कहती है कि जिस डिप्टी कमांडेंट को इस टीम का नेतृत्व करने की इजाजत दी गई वो पूरे इलाके से अपरिचित था और उसे केवल ट्रूप के आउट स्टेशन मूवमेंट की निगरानी करने के लिए लाया गया था । रिपोर्ट में कहा गया कि यह पहली गलती थी आश्चर्यजनक यह था कि जिस रास्ते से जवान निकले उसे पहले से सेनीटाइज कर लेना चाहिए था।

ताड़मेटला वाली गलती पुलवामा में भी दोहराई
पुलवामा हमले के बाद भी यह बात बार बार कही जा रही है कि 2500 जवानों को एक साथ नहीं भेजा जाना चाहिए था। हालांकि सीआरपीएफ के अधिकारियों का पत्रिका से कहना था कि आपरेशनल जरुरत के लिए जाना जरुरी था लेकिन स्टैण्डर्ड आपरेशन प्रोसीजर का पालन न करने की बात सभी मानते हैं वही ताड़मेटला में बीएसएफ के पूर्व डीजी राममोहन की अध्यक्षता में बनाई गई कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि कदम कदम पर स्टैण्डर्ड आपरेशन प्रोसीजर का पालन नहीं किया गया, पहले तो जिस रूट प्लान पर चलना था उसको फालो नहीं किया गया।

दूसरी गलती यह हुई कि जवान ताड़मेटला जाएंगे यह खबर लीक हो गई थी। रिपोर्ट कहती है कि शायद किसी ने किसी गांव वाले को यह बात बता दी बाद में कोर्ट आफ इन्क्वायरी में पता चला कि एक वायरलेस सेट ही माओवादियों के हाथ लग गया था। 6 अप्रैल को सुबह 5.45 पर जिस वक्त माओवादियों ने फायरिंग झोंकना शुरू किया उस वक्त जवान सिंगल फ़ाइल में चल रहे थे।
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कभी 76, कभी 25 कभी 39 शहादत
यह नहीं भुला जाना चाहिए कि छत्तीसगढ़ में तैनाती से पहले नलिन प्रभात जम्मू कश्मीर में डीआईजी थे और राष्ट्रपति पुलिस पुरस्कार के अलावा बहादुरी के लिए पुलिस मैडल भी प्राप्त कर चुके थे। 2013 में जब इस राममोहन कमीशन की रिपोर्ट आई तो तत्कालीन गृहमंत्री पी. चिदम्बरम ने आदेश दिया कि जवाबदेही तय होनी चाहिए और जो लोग भी इस घटना में शामिल रहे हैं उनके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए।

लेकिन लगभग आठ साल बीतने के बावजूद इस मामले में कोई भी कार्रवाई नहीं की गई। हां यह जरुर हुआ कि सीआरपीएफ के जवानों पर बार बार हमले होते रहे। गौरतलब है कि 24 अप्रैल 2017 को सुकमा में सीआरपीएफ के 25 जवान शहीद हुए वहीं 2014 में झीरम घाटी में 11 जवानों की शहादत हुई थी । कोर्ट आफ इन्क्वायरी के सदस्य कहते हैं यह आसानी से समझा जा सकता है कि एक कोर्ट आफ इन्क्वायरी होने के बाद दूसरी कोर्ट आफ इन्क्वायरी क्यों बनाई गई।
कोर्ट आफ इन्क्वायरी पूर्व एडीजी सीआरपीएफ हेड डीसी डे ने कहा, ताड़मेटला में अधिकारियों से जो गलती हुई वो परिस्थितियां मूल्यांकन की थी, मैंने अपनी रिपोर्ट और उसके नतीजे सरकार को सौंप दिए थे। उसके बाद एक और कोर्ट आफ इन्क्वायरी सेटअप की गई थी।
सीआरपीएफ एडीजी इंटेलिजेंस आन्ध्र प्रदेश तत्कालीन आइजी नलिन प्रभात ने कहा, मैंने जिस डिप्टी कमांडेंट को जवानों के साथ भेजा था वो पांच-छह महीने बटालियन में रहकर आया था। अगर वो फिर भी काम न कर पाए तो क्या कहा जाए।

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