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रायपुर

थरूर और सिंहदेव ने की राजनीति में युवाओं का भविष्य विषय पर परिचर्चा, दोनों नेताओं ने सुनाए निजी जीवन के संस्मरण

कांग्रेस सांसद और आल इंडिया प्रोफेशनल कांग्रेस के अध्यक्ष शशि थरूर ने कहा कि उनके परिवार में कभी कोई राजनीति में नहीं था

रायपुरJan 18, 2019 / 03:02 pm

Deepak Sahu

shashi tharoor

थरूर और सिंहदेव ने की राजनीति में युवाओं का भविष्य विषय पर परिचर्चा, दोनों नेताओं ने सुनाए निजी जीवन के संस्मरण

रायपुर. कांग्रेस सांसद और आल इंडिया प्रोफेशनल कांग्रेस के अध्यक्ष शशि थरूर ने कहा कि उनके परिवार में कभी कोई राजनीति में नहीं था। वे अच्छे छात्र थे, लेकिन राजनीति में रुझान था। उनकी मां कहती थीं कि तुम तो पढ़ो-लिखो, अच्छे मॉक्र्स लाओ। राजनीति उन लोगों के लिए है जो परीक्षा पास नहीं कर सकते। लेकिन उनका सुझाव गलत था।
राजनीति में सभी की भागीदारी होनी चाहिए। किसान, मजदूर का अनुभव और दूसरे पेशेवरों का अध्ययन मिलकर बेहतर नीतियां बना सकता है। देश को आगे लेकर जा सकता है। छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य, पंचायत और ग्रामीण विकास मंत्री टी.एस. सिंहदेव ने बताया कि उनके पिता आइएएस थे। उनकी मां राजनीति में आईं। मंत्री रहीं।
लेकिन 1983 में नगर पालिका चुनाव में उन्होंने उतरने की सोची तो पिता ने एक पत्र भेजकर राजनीति में जाने से मना किया। उन्होंने उनके पिता ने उनसे वकील बनने को भी कहा था। उन्होंने पिता के दोनों हिदायत नहीं मानी और आज आपके सामने हूं। दोनों नेता ऑल इंडिया प्रोफेशनल कांग्रेस द्वारा पं. दीनदयाल उपाध्याय ऑडिटोरियम में आयोजित युवाओं से संवाद के कार्यक्रम में बातें साझा कर रहे थे।
उनसे सवाल हुआ था कि अभिभावक हमेशा राजनीति में जाने से रोकते हैं। राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा ने सुझाव दिया कि युवाओं को पढ़ाई कर रोजगार करना चाहिए। लोगों के साथ काम करना चाहिए। कुछ पैसे बचाने चाहिए और फिर राजनीति में उतरना चाहिए, क्योंकि राजनीति आय का जरिया नहीं है। सांसद राजीव गौड़ा ने भी ऐसे ही सुझाव दिए। इस संवाद में सांसद-पत्रकार कुमार केतकर और एआइपीसी की क्षेत्रीय समन्वयक जरिता लेतफलांग ने भी भाग लिया।

राजनीति में अवसर से भी जुड़े सवाल
– सवाल – देश की युवा आबादी और मंत्रिपरिषद में युवाओं के प्रतिनिधित्व दर में खाई क्यों है।
– विवेक तन्खा – राजनीति में स्थापित बुजुर्ग जगह नहीं छोड़ते, तभी यह स्थिति बनी है। चार-चार बार सांसद-विधायक बनने वाले कुर्सी नहीं छोड़ेंगे तो युवाओं को मौका नहीं मिलेगा। युवाओं में क्षमता है, लेकिन उनकी सीमाएं हैं। चुनाव खर्चीला रहेगा तो युवा खर्च के लिए पैसा कहां से ला पाएगा।
– कुमार केतकर – स्वतंत्रता आंदोलन के नेताओं में कई एनआरआइ युवा थे। उन्होंने आदर्शवाद, उदारवाद और बहुलतावादी संस्कृति को आत्मसात किया था। लेकिन आज का युवा साम्प्रदायिक हो गया है। सिलिकॉन वैली में बसा एनआरआइ भी साम्प्रदायिकता की चपेट में है।

– सवाल – क्या स्वीडन की तरह संसदीय व्यवस्था में युवाओं के लिए सीट आरक्षित होनी चाहिए।
– टीएस सिंहदेव – हम लोग जगह नहीं छोड़ रहे हैं तो बिल्कुल रिजर्वेशन होना चाहिए।
– विवेक तन्खा – युवाओं को आरक्षण देने की बजाय उन लोगों को चुनाव लडऩे से रोका जाना चाहिए जो कई बार सांसद-विधायक बन चुके हैं।
– राजीव गौड़ा – संसदीय व्यवस्था में नहीं तो पार्टी के भीतर ऐसा किया जा सकता है।
– सवाल – क्या वरिष्ठ राजनेता युवाओं का इस्तेमाल करते हैं।
– टीएस सिंहदेव – जिन युवाओं ने काम करके अपनी जगह बनाई है, वे आगे आएंगे। उनकी उम्र अथवा जेंडर उन्हें रोक नहीं सकती। अब सभी पार्टियां जीतने वाले को टिकट देती हैं।
– विवेक तन्खा – पार्टी में काम करने वालों को पद मिलेगा तो बात बनेगी। यह नहीं कि किसी का फोन आने पर पद दिया जाए। पार्टियों में लोकतंत्र तब होगा जब पदाधिकारियों का वास्तव में चुनाव हो।
– जरिता लेतफलांग – धरना-प्रदर्शनों से युवा राजनीतिक कार्यकर्ता को सीख मिलती है। यह जमीन काम है, जिसके जरिए पहचान बनती है।

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