scriptनागपंचमी पर्व आज : 100 साल पुराने रायपुर के दंतेश्वरी अखाड़े की टूटी परंपरा, दांव-पेच नहीं दिखा पाएंगे पहलवान | the broken tradition of 100 years old Danteshwari Arena of Raipur | Patrika News
रायपुर

नागपंचमी पर्व आज : 100 साल पुराने रायपुर के दंतेश्वरी अखाड़े की टूटी परंपरा, दांव-पेच नहीं दिखा पाएंगे पहलवान

सभी तीज-त्योहार बारी-बारी से कोरोना की भेंट चढ़ते जा रहे हैं। शनिवार को भगवान शिव के प्रमुख गण नागदेवता के पूजन का विशेष पर्व नागपंचमी है। 100 साल पुराने रायपुर के दंतेश्वरी अखाड़े में दंगल की परंपरा भी टूट रही है।

रायपुरJul 25, 2020 / 01:19 am

Dinesh Kumar

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नागपंचमी पर्व आज : 100 साल पुराने रायपुर के दंतेश्वरी अखाड़े की टूटी परंपरा, दांव-पेच नहीं दिखा पाएंगे पहलवान

प्रमुख शिवालय भी लॉकडाउन, घर में ही नागदेवता की पूजा


रायपुर. सभी तीज-त्योहार बारी-बारी से कोरोना की भेंट चढ़ते जा रहे हैं। शनिवार को भगवान शिव के प्रमुख गण नागदेवता के पूजन का विशेष पर्व नागपंचमी है। 100 साल पुराने रायपुर के दंतेश्वरी अखाड़े में दंगल की परंपरा भी टूट रही है। जहां हर साल नागपंचमी पर छोटे-बड़े पहलवानों के दांव-पेच का दंगल देखने के लिए शहर के लोग जुटा करते थे। शहर के सभी प्राचीन शिवालय लॉकडाउन हैं। इसलिए माताएं कहीं-कहीं छोटे-छोटे शिव मंदिरों में दूध चढ़ाकर और घरों में भगवान शिव के फोटो के सामने बैठकर पूजन कर सुख, शांति और समृद्धि की कामना करेंगी। सावन मास में ऐसा पहली बार हो रहा है, जब धार्मिक महत्व का सबसे प्राचीन महादेवघाट में भक्तों का मेला नहीं लगेगा। जहां हजारों की संख्या में श्रद्धालु भोलेबाबा का अभिषेक पूजन करने नागपंचमी के दिन शहर के अलावा अनेक क्षेत्रों से कांवर लेकर पहुंचते थे। वह मंदिर आज भक्तों के लिए बंद हो चुका है। सिर्फ मंदिर के पुजारी ही भक्तों के कल्याण के लिए अभिषेक पूजन करेंगे।
अब केवल रस्में अदा करेंगे
शहर के कुशालपुर में माता दंतेश्वरी मंदिर की प्राचीनता से दंतेश्वरी अखाड़े का महत्व जुड़ा हुआ है। अशोक पहलवान बताते हैं कि पिछले 100 वर्षों से यहां दंगल की परंपरा चली आ रही थी। छोटे-बड़े पहलवानों के दांव-पेंच का प्रदर्शन देखने के लिए हजारों की संख्या में लोग जुटते थे। गुढिय़ारी अशोक नगर में भी दंगल होता था, लेकिन कोरोना के कारण इस बार अखाड़े की पूजा कर सिर्फ रस्में अदा करेंगे।
नागदेवता को कटोरी में दूध भरकर अर्पण
माताएं नागपंचमी का व्रत रखकर प्राचीन शिवालयों में भोलेबाबा के गले में लिपटे फनधर नागदेवता और नंदीबाबा का दुग्धाभिषेक नहीं कर पाएंगी, बल्कि घरों के आसपास शिव मंदिर या भगवान शिव के फोटो सामने या फिर मिट्टी के शिव व नागदेवता की मूर्ति बनाकर पूजन करेंगे। कटोरी में दूध भरकर अर्पण करेंगे, ताकि नागदेवता प्रसन्न होकर मनोकामनाएं पूर्ण करें।
सपेरे हो जाते थे सक्रिय
नागपंचमी पर्व से पहले सपेरे शिवालयों के बाहर नागदेवता का दर्शन कराने के लिए काफी सक्रिय हो जाते थे और चढ़ावा लेते थे। घर-घर पहुंच कर नाग-नागिन का दर्शन कराकर बख्शीश लेने पहुंचते थे। वे अब नहीं आएंगे।

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