शहर के कुशालपुर में माता दंतेश्वरी मंदिर की प्राचीनता से दंतेश्वरी अखाड़े का महत्व जुड़ा हुआ है। अशोक पहलवान बताते हैं कि पिछले 100 वर्षों से यहां दंगल की परंपरा चली आ रही थी। छोटे-बड़े पहलवानों के दांव-पेंच का प्रदर्शन देखने के लिए हजारों की संख्या में लोग जुटते थे। गुढिय़ारी अशोक नगर में भी दंगल होता था, लेकिन कोरोना के कारण इस बार अखाड़े की पूजा कर सिर्फ रस्में अदा करेंगे।
माताएं नागपंचमी का व्रत रखकर प्राचीन शिवालयों में भोलेबाबा के गले में लिपटे फनधर नागदेवता और नंदीबाबा का दुग्धाभिषेक नहीं कर पाएंगी, बल्कि घरों के आसपास शिव मंदिर या भगवान शिव के फोटो सामने या फिर मिट्टी के शिव व नागदेवता की मूर्ति बनाकर पूजन करेंगे। कटोरी में दूध भरकर अर्पण करेंगे, ताकि नागदेवता प्रसन्न होकर मनोकामनाएं पूर्ण करें।
नागपंचमी पर्व से पहले सपेरे शिवालयों के बाहर नागदेवता का दर्शन कराने के लिए काफी सक्रिय हो जाते थे और चढ़ावा लेते थे। घर-घर पहुंच कर नाग-नागिन का दर्शन कराकर बख्शीश लेने पहुंचते थे। वे अब नहीं आएंगे।