आपकी नजर में संगीत क्या है?
जब तक शास्त्रीय गायन नहीं होगा तब तक आप आगे नहीं बढ़ पाएंगे। आपको माता-पिता से संस्कार नहीं मिलेंगे आप बलशाली और समझदार इंसान नहीं बन पाएंगे। संगीत की संस्कारधानी शास्त्रीय गायन है। जब तक हम रागों का ध्यान नहीं करेंगे, हम कुछ भी नहीं गा सकते। जिस तरह प्रकृति अपनी जगह अटल है उसी तरह राग भी अटल है। राग देवी-देवता हैं। तो जहां देवी-देवता का वास होगा वह जगह कभी खत्म नहीं होती। संगीत इबादत है, वंदनीय है। पूजा है। मैं किसी शादी-ब्याह और जन्मदिन की पार्टियों में ऑफर के बावजूद इसलिए नहीं गाता क्योंकि मेरा अंदाज सुफियाना है और वहां वह सबकुछ होता है जिससे संस्कार प्रदूषित होते हैं।
गायकी में क्या इनोवेशन चल रहा है?
गायकी खत्म हो चुकी है। डंके की चोट पर कह सकता हूं कि कुछ भी नहीं हो रहा है। गुरु-शिष्य परंपरा खत्म हो चुकी है। कोई इस परंपरा से सीखना भी नहीं चाहता। फिल्मीं गानों को सुनकर सिंगर बनना चाहता है। सारेगामा, इंडियन आइडल जैसे कार्यक्रम भी दोषी हैं। क्योंकि हमारे पास नए लोग छह महीने का टाइम सीखने आते हैं वे कहते हैं हमें फलां कॉम्पीटीशन में जाना है तो आप ये तीन फिल्मी गानें सीखा दें।
अब तक का सफर कैसा रहा ?
तालीम के बाद मैंने सुगम संगीत के अलावा अन्य स्पर्धाओं में हिस्सा लेना शुरू किया। गजल व शास्त्रीय संगीत की प्रतियोगिताओं में भाग लिया करता था। १९७२ से मैंने मंचों पर गाना शुरू किया। 1982 में रायपुर से ऑडिशन पास किया। 1994 में मैं ए ग्रेड हुआ और 2012 में मैं टॉप ग्रेड हुआ। इंडिया में पांच या छह टॉप ग्रेड हैं इनमें से एक मैं हूं। 2011 में कोलकाता से गंधर्व अवॉर्ड मिला। 2016 में लाइफ टाइम अवॉर्ड और टॉप ग्रेड अवार्ड 2012 में मिला।
यूथ को क्या मैसेज देंगे ?
यूथ बहुत एक्टिव और एनर्जिक है। अगर वे गुरु-शिष्य परंपरा से शास्त्रीय गायन पर फोकस करने लगें तो आगे बढ़ सकते हैं। गुरु परफार्मिंग आर्टिस्ट होना चाहिए। परफार्मिंग आर्टिस्ट और एक सिंपल टीचर में जमीन-आसमान का फर्क होता है। अब तक मेरा अनुभव यही रहा है कि कोई भी कलाकार जो ऊंचाइयां हासिल करता है अगर वह मेल है तो वाइफ और फीमेल है तो उसके हसबैंड का सबसे बड़ा योगदान होता है।