बस्तर में गिद्धों की नई उड़ान
गिद्ध विलुप्ति की कगार पर
बस्तर में गिद्धों की नई उड़ान
प्रकृति के सफाईकर्मी माने जाने वाले गिद्ध विलुप्ति की कगार पर हैं। इनकी ९० फीसदी आबादी का सफाया हो चुका है। ऐसे में बस्तर के इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान में इनकी मौजूदगी की खबर प्रकृति और पर्यावरण प्रेमियों के लिए सकुनदेह है। हमारा देश जैव विविधताओं से समृद्ध है। जहां दुनियाभर की जैव विविधता का आठ प्रतिशत हिस्सा मौजूद है। सभी जीव एक-दूसरे से खाद्य श्रृंखला से जुड़े हैं। ऐसे में इनमें से किसी एक का भी विलुप्त हो जाना पारिस्थितिकीय तंत्र को प्रभावित करता है।
एक अनुमान के मुताबिक चार दशक पहले तक देश में गिद्धों की संख्या आठ करोड़ से अधिक थी। साल १९९९ में हुए एक सर्वे में यह खुलासा हुआ कि गिद्धों की संख्या में तेजी से गिरावट आ रही है। बाम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी के मुताबिक गिद्धों में असाधारण मृत्यु दर तेजी से बढ़ी है, वहीं इनकी प्रजनन दर में भी असामान्य रूप से कमी हुई है।
भारतीय उप महाद्वीप में यह विलुप्त होने की कगार पर पहुंच चुके हैं। गिद्ध मरे हुए जानवरों के शव को खाकर बदबू और गंदगी को खत्म कर पर्यावरण को स्वच्छ कर इलाके को महामारी से बचा लेते थे। इसी तरह जंगलों में हिंसक जानवरों के शिकार के अवशेष का भी ये सफाया कर देते थे। इस तरह पर्यावरण की रक्षा में इनका खासा योगदान हुआ करता था। एक लाख गिद्ध सालभर में १२ लाख टन मांस का सफाया कर देते हैं।
इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान में ऊंचे पेड़ और पहाडिय़ां हैं, जो कि इनके रहवास के नजरिए से सुरक्षित हैं। इसी वजह से यहां इनकी तादाद में बढ़ोतरी देखी जा रही है। गिद्ध ऊंचे दरख्तों या पहाडिय़ों पर अपना भद्दा सा घोसला बनाते हैं। राष्टीय उद्यान क्षेत्र में जंगल महकमा इन्हें संरक्षित करने की कवायद में जुटा है। इसके लिए बाकायदा पक्षी विशेषज्ञों की मदद भी ली जा रही है। जो इन्हें गिद्ध के रहवास और प्रकृति की जानकारी दे रहे हैं।
देश में गिद्धों की नौ प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें से पांच ही छत्तीसगढ़ में मौजूद है। पशुओं के दर्द और सूजन की दवा डाइक्लोफेनेक गिद्धों के काल की मुख्य वजह बताई जाती है। ऐसे मवेशी जिन्हें यह इंजेक्शन दिया जाता था, उनके मांस भक्षण से ही गिद्धों की मौत हो जाती थी। यही वजह है कि शहरी क्षेत्रों मे जहां पशुपालन बढ़ा वहां से इनका नामोनिशान ही मिट गया। कुल मिलाकर मानव की गलतियों का खामियाजा गिद्धों को भुगतना पड़ा। यही वजह है कि डाइक्लोफेनेक को प्रतिबंधित कर दिया गया।
बहरहाल, विलुप्त हो रहे गिद्धों को बचाने के लिए गिद्ध नजर की दरकार है। वरना, गिद्ध तो गायब हो जाएंगे और महज ‘गिद्ध दृष्टिÓ का मुहावरा की बाकी रह जाएगा।
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