ऐसा ही प्लान अनेक सामाजिक संस्थाएं बना रही है। जिन्होंने लॉक डाउन से पहले परिचय सम्मेलन के माध्यम से रिश्ते तय कराने की पहल पूरी कर चुके हैं। शहर में तो बड़े घरानों में अधिकांश साजन देवउठनी एकादशी के बाद से फरवरी के बीच में ही संपन्न हो जाती है, लेकिन ग्रामीण अंचलों में मई और जून में ही सबसे अधिक विवाह समारोह होते हैं। जिस पर यह करोना आपदा आफत बन चुका है।
इस बीच केंद्रीय गृह मंत्रालय की गाइडलाइन में सिर्फ वर-वधू पक्ष को मिलाकर 50 लोगों के शामिल होने की लक्ष्मण रेखा तय की जा चुकी है। उसी के दायरे में रहकर विवाह उत्सव लोग कर सकेंगे। समाज के अनेक संगठन को ग्रामीण अंचलों तक जुड़े हुए हैं। वे सशर्त विवाह कराने के लिए शासन प्रशासन के सामने अर्जी लगा रहे हैं।