फिर इंद्रदेव प्रसन्न होकर वर्षा करेंगे, फलस्वरूप खेतों में अन्न उत्पन्न होगा और ब्रजवासियों का भरण-पोषण होगा। यह सुन श्रीकृष्ण सबसे बोले कि इंद्र से अधिक शक्तिशाली तो गोवर्धन पर्वत है, जिनके कारण यहां वर्षा होती है। गोवर्धन पर्वत पर हमारी गायें चरती हंै। गायों से दूध, घी, माखन बनता है। सबको इंद्र से भी बलशाली गोवर्धन की पूजा करना चाहिए।
श्रीकृष्ण ने उठाया गोवर्धन पर्वत : भगवान श्रीकृष्ण की बात मान कर सभी ब्रजवासी इंद्र की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे। देवराज इन्द्र ने इसे अपना अपमान समझा और प्रलय के समान मूसलाधार वर्षा शुरू कर दी। तब भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठा कर ब्रजवासियों की भारी बारिश से रक्षा की थी।
इंद्र देव पहुंचे भगवान की शरण में : इसके बाद इंद्र को पता लगा कि श्रीकृष्ण वास्तव में विष्णु के अवतार हैं और अपनी भूल का आभास हुआ। तब इंद्र देवता को भगवान श्रीकृष्ण से क्षमा याचना करनी पड़ी। इन्द्रदेव की याचना पर भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को नीचे रखा और सभी ब्रजवासियों से कहा कि अब वे हर साल गोवर्धन की पूजा कर अन्नकूट पर्व मनाएं। तब से ही यह पर्व गोवर्धन के रूप में मनाया जाता है।