इन दिनों नर्मदा तट अलीगंज, बगलबाड़ा और क्षेत्र की आसपास की नदियों में पितरों को तर्पण करने के लिए प्रात: समय से लोग पहुंच रहे हैं। जहां ब्रह्मणों के माध्यम से तर्पण कराने का सिलसिला सुबह नौ बजे तक चलता है। वहीं घरों में श्राद्ध कार्यक्रम भी जारी हैं, लेकिन कोरोना काल के चलते श्राद्ध भोजन करने के लिए ब्राह्मणों का टोटा बना है। श्राद्ध के लिए हामी तो भरी जा रही है, लेकिन भोजन करने के लिए ब्राह्मण बहुत कम संख्या में घरों में जा रहे।
बेगमगंज. पितृ विसर्जन अमावस्या बृहस्पतिवार को है। माना जाता है कि बृहस्पतिवार को पितरों को विदा करने से पितृ देव बहुत प्रसन्न होते हैं। क्योंकि यह मोक्ष देने वाले भगवान विष्णु की पूजा का दिन माना जाता है। पंडित कमलेश शास्त्री के अनुसार जो व्यक्ति श्रद्धा और विश्वास से नमन कर अपने पितरों को विदा करता है। उसके पितृ देव उसके घर-परिवार में खुशियां भर देते हैं। जिस घर के पितृ प्रसन्न होते हैं, पुत्र प्राप्ति और मांगलिक कार्यक्रम उन्हीं घरों में होते हैं। पितृ विसर्जन अमावस्या की शाम को पितरों को विदा किया जाता है। इसलिए इस अमावस्या को पितृ विसर्जन अमावस्या कहा गया है। इसका एक नाम सर्वपितृ अमावस्या भी है। यह पितृपक्ष का अंतिम दिन होता है। हिंदू धर्म में इस दिन का महत्व बहुत अधिक है।
दूर होगा पितृदोष: पं. शास्त्री के पितृ विसर्जन की विधि बताई, जिसमें ब्रह्म मुहूर्त में उठकर बिना साबुन स्नानकर कपड़े पहनें। इस दिन घर में सात्विक भोजन ही बनाएं। शाम के समय चार मिट्टी के दीपक जलाएं। साथ ही यह भी निवेदन करें कि उनका आशीर्वाद बना रहे। मंदिर में भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने पीपल के पेड़ के नीचे वह दीपक रखकर और पानी चढ़ाकर पितरों से यह प्रार्थना करें कि अब वह यहां से अपने लोक में जाएं। ध्यान रहे कि पितृ विसर्जन विधि के दौरान किसी से भी बात ना करें। जब मंदिर से लौटकर घर आ जाएं तब अपने घर के मंदिर में हाथ जोड़कर ही किसी से बात करें।