रायसेन, विदिशा, भोपाल के व्यापारी यहां दुकान लगाकर सामान बेचने का कारोबार सालों से करते चले आ रहे हैं। ऐसी मान्यता है कि यदि कोई भी परिवार का सदस्य हरसिद्धी माता का प्रसाद ग्रहण कर लेता है तो उसे हर साल देवी दर्शन करने और दरबार में प्रसाद चढ़ाने आना ही पड़ता है। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है।
मंदिर का है प्राचीन इतिहास…
यह हरसिद्धी माता मंदिर का प्राचीन इतिहास और महत्व जरा अलग है। माता के दरबार में लोगों की भारी जन आस्था है। माता रानी हरसिद्धी भक्तों की खाली झोली तो भरती ही है, साथ ही मनोकामनाएं पूरी भी करती हैं। कई बहुओं की सूनी खाली गोद बच्चा देकर भर दी।
धर्मसंघ मंदिर मठ पुजारी संघ के जिलाध्यक्ष पंडित महंत बालमुकंद दास त्यागी, पूर्व सरंपच जगन्नाथ सिंह यादव ने बताया कि उज्जैन के राजा विक्रमादित्य का साम्रज्य मालवा क्षेत्र में फैला था। उनकी वीरता की यशकीर्ति भी चारों तरफ फैली थी। एक बार उज्जैन के राजा विक्रमादित्य अपने कारवां के साथ बैलगाड़ी से हरसिद्धी माता की प्रतिमा लेकर जा रहे थे।
माता हरसिद्धी की तीन पिंडी रूपी प्रतिमाएं चबूतरे पर रखा गईं। तभी राजा विक्रमादित्य ने हरसिद्धी माता की इन प्रतिमाओं को इसी चबूतरे पर विधि-विधान से विराजित करा दिया। इसके बाद राजा विक्रमादित्य उज्जैन रवाना हो गए।
ग्रामीणों ने ली माता के दरबार में शरण
बताया जाता है कि एक बार जब बारिश में परवरिया गांव में विपदा की घड़ी आई। मूसलाधार बारिश होने से टापू पर बसा परवरिया गांव चारो तरफ बाढ़ से घिर गया और उनको जनमाल का काफी नुकसान हो गया। कई ग्रामीण सारी चिंता छोड़कर माता हरसिद्धी के दरबार में शरण लेने पहुंच गए, तब उनकी जान बच सकी।
ऐसी हैं हरसिद्धी माता जो अपने भक्तों की जानमाल की रक्षा भी करती हैं। अब इस हरसिद्धी माता मंदिर की समिति व ट्रट भी गठित करवा दिया गया है। जिसमें ऋषिनाथ सिंह कुशवाह, द्वारका प्रसाद राठौर, पूर्व सरंपच जगन्नाथ सिंह यादव सदस्य के रूप में शामिल हैं। मंदिर परिसर में धर्मशाला, नल-जल योजना चबूतरे सहित बगीचा भी है। यहां लोग परिवार सहित ठहरते हैं।